महाभारत [पञ्चम खण्ड] [शांति पर्व] | Mahabharat [Pancham Khand] [Shanti Parva]
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
54.22 MB
कुल पष्ठ :
1090
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७
हे
श्रीपस्मात्मने नमः
श्रीमहाभारतम्
छान्तिपर्व
नेक ककानार
( राजघमीजुशासनपत )
प्रथमो5ध्यायः
युधिह्िरके पास नारद आदि महर्पियोका आगमन ओर युधिष्टिरका कर्णके साथ
अपना सम्बन्ध बत्ताते हुए कर्णको ज्ञाप मिठनेका इत्तान्त पूछना
नारायण नमस्कृत्य नर यैब नसेत्तमम् 1
देवीं सरखती ध्यासं ततो जयसुदीरयेत् ॥
अन्तर्यामी नारायगखरूप भगवान् श्रीकृष्ण; ( उनके
नित्य सखा ) नरखरूप नरश्रेछठ अजुनः ( उनकी लीला प्रकट
करनेवाली ) मगवती सरखती और ( उनकी छीछाओऑका
संकछन करनेवाले ) महर्षि वेदव्यासको नमस्कार करके जय
( महामारत ) का पाठ करना चाहिये ॥
कैद्यम्पायन उवाच
छतोदकारते ख़ुदा सर्वेघां पाण्डुनन्दनाः ।
बिडुरो ध्रृतराष्ट्रश्र खर्याश्च भरतस्रियः ॥ १ ॥
वैद्यम्पायनजी कहते हैं--राजन् ! पाण्डवः विदुर
धरूतराष्ट्र तया मरतवदकी सम्पूर्ण खियों-इन सबने गज्ाजीमें
अपने समस्त सुद्ददोंके छिये जलाज्ञलियाँ प्रदान कीं ॥ १ ||
तन्न ते सुमहात्मानो न्यवसन् पाण्डुनन्दनाः ।
शौच निवर्तयिष्यन्तो मासमाजं वहिः पुरात् ॥ २ ॥
तदनन्तर वे महदामनस्त्री पाण्डव आत्मझुद्धिका सम्पादन
करनेके छिये एक मासतक वहीं ( गज़ातरपर ) नगरसे
बाहर टिके रहे ॥ रे ॥
कलोदकं तु राजानें धर्मेपु्रं युधिष्टिरमू।
अमिजग्मुमेहात्मान* खिद्धा घ्ह्मषिससमाः ॥ ३ ॥
मूतकौके छियें जलाजल्ि देकर वैठे हुए धर्मपुत्र राजा
युषिष्टिरके पास बहुत से श्रेष्ठ ्रह्नर्पि सिद्ध मद्दात्मा पार |)
डेपायनों नारद देवछश्र महायूषिः ।
देचस्थानश्वर कण्वश्च तेपां शिप्याश्व सत्तसाः ॥ ४ ॥
हैपायन व्यास: नारद; महर्षि देवछ; देवस्थान; कण्व
तथा उनके श्रेष्ठ शिष्य भी वहां आये थे || ४ ||
अन्ये तर बेदबरि्वांसः कतप्रशञा ड्विजञातयर
मर बह इननरडन्डूर
गुहस्थाः स्रातकाः सनतो द्दशु* कुरुसत्तमभ्ू॥ ५ ॥
इनके अतिरिक्त अनेक वेदवेत्ता एवं पवित्र बुद्धिवाले
ब्राह्मण श्रहस्थ एवं ल्लातक तत मी वहीं आकर कुसशेष्ठ
युधिष्टिसे मिले ॥ ५॥
तेडसिगम्य मद्दात्सानः पूजिताश्न यथाविधि ।
आसखतेषु मदादेपु विधिशुस्ते सहषंयः ॥ ६ ॥
वे महात्मा सहर्षि वहों पहुँचकर विधिपूर्वक पूजित हो
शजाके दिये हुए बहुमूल्य आसनॉपर विराजमान हुए ॥६॥
प्रतियुद्दा ततः पूजां तत्कालसधशी तदा ।
प्युपासन, यथान्याय परिवार्य युधिष्टिसमू ॥ ७ ॥
पुण्ये भागीरथीतीरे शोकब्याकुछचेतसमू ।
आश्वासयन्तों राजानें विप्राः शतसहस्रशः ॥ ८ ॥
'उस समयके अनुरूप पूजा स्वीकार करके वे सैकड़ों)
हजारों ब्रह्न्षि मागीरथीकि पावन तटपर शोकसे व्याकुलचित्त
हुए राजा युधिष्टिरको सब्र ओरसे घेरकर आश्वासन देते हुए
यथोचितरूपसे उनके पास बैठे रहे ॥७-८ ॥|
नारद्स्त्वबवीत् काले धमेपुत्र युधिष्टिस्मू ।
सम्भाष्य मुनिभिः सार्ध कृष्णह्ैपायनादिमिः ॥ ९ ॥
उस समय श्रीकृ्णद्ेगायन आदि मुनियोंके साथ बात-
व्वीत करके सदसे पहले नारदजीने धर्मपुत्र युधिष्टिसे कहा-1
भवता बाइुवीयेंण प्रसादान्माधवस्य च 1
जितेयमवनिः छृत्सा धर्मेंग च' युधिष्टिर ॥ १० ॥
प्महाराज युषिष्टिर | आपने अपने बाहुबल; मगवान्
औकृव्णकी कृपा तथा धर्मके प्रमावसे इस सम्पूर्ण प्रथ्वीपर
विजय पायी है ॥ १० ||
दिष्टया सुक्तस्तु संग्रामादस्पाछोकसयंकरात् 1
कगघमेरतश्रापि कब्चिन्मोदुसि . प्राण्डव | ११ ॥|
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