महाभारत [पञ्चम खण्ड] [शांति पर्व] | Mahabharat [Pancham Khand] [Shanti Parva]

Mahabharat [Pancham Khand]  [Shanti Parva] by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ हे श्रीपस्मात्मने नमः श्रीमहाभारतम्‌ छान्तिपर्व नेक ककानार ( राजघमीजुशासनपत ) प्रथमो5ध्यायः युधिह्िरके पास नारद आदि महर्पियोका आगमन ओर युधिष्टिरका कर्णके साथ अपना सम्बन्ध बत्ताते हुए कर्णको ज्ञाप मिठनेका इत्तान्त पूछना नारायण नमस्कृत्य नर यैब नसेत्तमम्‌ 1 देवीं सरखती ध्यासं ततो जयसुदीरयेत्‌ ॥ अन्तर्यामी नारायगखरूप भगवान्‌ श्रीकृष्ण; ( उनके नित्य सखा ) नरखरूप नरश्रेछठ अजुनः ( उनकी लीला प्रकट करनेवाली ) मगवती सरखती और ( उनकी छीछाओऑका संकछन करनेवाले ) महर्षि वेदव्यासको नमस्कार करके जय ( महामारत ) का पाठ करना चाहिये ॥ कैद्यम्पायन उवाच छतोदकारते ख़ुदा सर्वेघां पाण्डुनन्दनाः । बिडुरो ध्रृतराष्ट्रश्र खर्याश्च भरतस्रियः ॥ १ ॥ वैद्यम्पायनजी कहते हैं--राजन्‌ ! पाण्डवः विदुर धरूतराष्ट्र तया मरतवदकी सम्पूर्ण खियों-इन सबने गज्ाजीमें अपने समस्त सुद्ददोंके छिये जलाज्ञलियाँ प्रदान कीं ॥ १ || तन्न ते सुमहात्मानो न्यवसन्‌ पाण्डुनन्दनाः । शौच निवर्तयिष्यन्तो मासमाजं वहिः पुरात्‌ ॥ २ ॥ तदनन्तर वे महदामनस्त्री पाण्डव आत्मझुद्धिका सम्पादन करनेके छिये एक मासतक वहीं ( गज़ातरपर ) नगरसे बाहर टिके रहे ॥ रे ॥ कलोदकं तु राजानें धर्मेपु्रं युधिष्टिरमू। अमिजग्मुमेहात्मान* खिद्धा घ्ह्मषिससमाः ॥ ३ ॥ मूतकौके छियें जलाजल्ि देकर वैठे हुए धर्मपुत्र राजा युषिष्टिरके पास बहुत से श्रेष्ठ ्रह्नर्पि सिद्ध मद्दात्मा पार |) डेपायनों नारद देवछश्र महायूषिः । देचस्थानश्वर कण्वश्च तेपां शिप्याश्व सत्तसाः ॥ ४ ॥ हैपायन व्यास: नारद; महर्षि देवछ; देवस्थान; कण्व तथा उनके श्रेष्ठ शिष्य भी वहां आये थे || ४ || अन्ये तर बेदबरि्वांसः कतप्रशञा ड्विजञातयर मर बह इननरडन्डूर गुहस्थाः स्रातकाः सनतो द्दशु* कुरुसत्तमभ्ू॥ ५ ॥ इनके अतिरिक्त अनेक वेदवेत्ता एवं पवित्र बुद्धिवाले ब्राह्मण श्रहस्थ एवं ल्लातक तत मी वहीं आकर कुसशेष्ठ युधिष्टिसे मिले ॥ ५॥ तेडसिगम्य मद्दात्सानः पूजिताश्न यथाविधि । आसखतेषु मदादेपु विधिशुस्ते सहषंयः ॥ ६ ॥ वे महात्मा सहर्षि वहों पहुँचकर विधिपूर्वक पूजित हो शजाके दिये हुए बहुमूल्य आसनॉपर विराजमान हुए ॥६॥ प्रतियुद्दा ततः पूजां तत्कालसधशी तदा । प्युपासन, यथान्याय परिवार्य युधिष्टिसमू ॥ ७ ॥ पुण्ये भागीरथीतीरे शोकब्याकुछचेतसमू । आश्वासयन्तों राजानें विप्राः शतसहस्रशः ॥ ८ ॥ 'उस समयके अनुरूप पूजा स्वीकार करके वे सैकड़ों) हजारों ब्रह्न्षि मागीरथीकि पावन तटपर शोकसे व्याकुलचित्त हुए राजा युधिष्टिरको सब्र ओरसे घेरकर आश्वासन देते हुए यथोचितरूपसे उनके पास बैठे रहे ॥७-८ ॥| नारद्स्त्वबवीत्‌ काले धमेपुत्र युधिष्टिस्मू । सम्भाष्य मुनिभिः सार्ध कृष्णह्ैपायनादिमिः ॥ ९ ॥ उस समय श्रीकृ्णद्ेगायन आदि मुनियोंके साथ बात- व्वीत करके सदसे पहले नारदजीने धर्मपुत्र युधिष्टिसे कहा-1 भवता बाइुवीयेंण प्रसादान्माधवस्य च 1 जितेयमवनिः छृत्सा धर्मेंग च' युधिष्टिर ॥ १० ॥ प्महाराज युषिष्टिर | आपने अपने बाहुबल; मगवान्‌ औकृव्णकी कृपा तथा धर्मके प्रमावसे इस सम्पूर्ण प्रथ्वीपर विजय पायी है ॥ १० || दिष्टया सुक्तस्तु संग्रामादस्पाछोकसयंकरात्‌ 1 कगघमेरतश्रापि कब्चिन्मोदुसि . प्राण्डव | ११ ॥|




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