मोक्ष की कुंजी १ | Moksha Ki Kunji 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
580
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(४)
रूपी खेचटिया (नाचिक) हैं । समकित रूपी ख़ेवटिया न दो
तो सर साधन शन्य रूप हैं । जैसे बिना बीज के वृक्षकी
उत्पत्ति) वृद्धि च फल नहीं होते) इसी प्रकार समकित (सच्ची
समकः सद विवेक ) रूपी बीज के बिना सस्यकू ज्ञान,
चारित्र की उत्पात्ति) स्थिति और प्ृद्धि भी नहीं हो सकती
तथा उसका फल सत्य सुख ( मोक्ष ) नहीं मिलता । तथा
समकित सीच के समान है| जैसे चिना नीच के मकान नहीं
ठहर सकता उसी प्रकार बिना समक्षित के ज्ञान चासित्र
नहीं ठद्दर सकते |
(४५) प्र्न-समकित गुणकों रोकने वाला श्रतरंग
कारण क्या है ?
.. खत्तर--मिथ्यारव मोइनीय है । मिथ्या शथात् खोटा
मोददनीय अथात् राँचना, ममस्व करना । जो बात खोटी दे
उसमें रौचे; ममता करें सो मिथ्यात्व मोइनीय दे । ऐसी
बुद्धि उत्पन्न होने का कारण मिथ्यात्व मोहनीय के कमें-
दल हैं । और पुनः ऐसी वाद्धि से मिथ्यात्व सोदनीय कर्म
का बंघ होता है ।
(९) प्रश--मिथ्याख मोहनीय से केसी बुद्धि
होती है ? .
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