मोक्ष की कुंजी १ | Moksha Ki Kunji 1

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Moksha Ki Kunji 1 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) रूपी खेचटिया (नाचिक) हैं । समकित रूपी ख़ेवटिया न दो तो सर साधन शन्य रूप हैं । जैसे बिना बीज के वृक्षकी उत्पत्ति) वृद्धि च फल नहीं होते) इसी प्रकार समकित (सच्ची समकः सद विवेक ) रूपी बीज के बिना सस्यकू ज्ञान, चारित्र की उत्पात्ति) स्थिति और प्ृद्धि भी नहीं हो सकती तथा उसका फल सत्य सुख ( मोक्ष ) नहीं मिलता । तथा समकित सीच के समान है| जैसे चिना नीच के मकान नहीं ठहर सकता उसी प्रकार बिना समक्षित के ज्ञान चासित्र नहीं ठद्दर सकते | (४५) प्र्न-समकित गुणकों रोकने वाला श्रतरंग कारण क्या है ? .. खत्तर--मिथ्यारव मोइनीय है । मिथ्या शथात्‌ खोटा मोददनीय अथात्‌ राँचना, ममस्व करना । जो बात खोटी दे उसमें रौचे; ममता करें सो मिथ्यात्व मोइनीय दे । ऐसी बुद्धि उत्पन्न होने का कारण मिथ्यात्व मोहनीय के कमें- दल हैं । और पुनः ऐसी वाद्धि से मिथ्यात्व सोदनीय कर्म का बंघ होता है । (९) प्रश--मिथ्याख मोहनीय से केसी बुद्धि होती है ? .




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