तैरते दीप | Tairate Deep

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Tairate Deep by सुरेन्द्र नाथ 'नूतन' - Surendra Nath 'Nutan'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७. जय मु भ एकल हे . न जलन पा गीत इतनी पीड़ा असह वेदना फिर भी नयन नहीं गीले हैं इतनी चर्षा इतना आतप फिर भी पात नहीं पीले हैं। | रात की काली परछाई में - भोर की किरण छिपी होती है| दुख के चक्रव्यूह में भी तो सुख की लहर दवी होती है। | पतझड़ पास खड़ा है फिर भी वृक्ष झूम कर लहराते - हैं। कारों की शैय्या पर अकसर फूल समुज्ज्यल खिल जाते है। इतनी घुटन भरी जक़ड़न है फिर भी दिशा नहीं भूले हैं इतनी वर्षा इतनी आतप फिर भी पात नहीं पीले हैं । सागर के आदेश में अक्सर ज्यार इधर आते जाते हैं। दृढ़ निश्चय मन फिर भी उसके सीपी में मोती पाते हैं। | कितनी भी मजबूत सृष्टि हो उल्कापात हुआ करता है। कितना भी संयत जीवन हो । पर आधात सहा करता है। | जीवन और मरण के तट पर मैंने च्रास बहुत झेले हैं। इतनी वर्षा इतना आतप फिर भी पात नहीं पीले हैं। तैरते दीप /7




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