प्रेमचन्द की सर्वश्रेष्ठ कहानियां | Premchand Ki Sarvshreshth Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
237
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वक्त कद्दानियाँ कहीं स्कूल करिकुलम में रख दी जाती, तो शायद पिताश्रों
का एक डपुटेशन इस के विरोध में शिक्षा-विभाग के अध्यक्ष की सेवा
में पहुँचता । श्राज छोटे बड़े सभी क्लासों में कहानियाँ पढ़ाई जाती हैं
और परीक्षाओं में उन पर प्रश्न किए जाते हैं । यह मान लिया गया दै
कि सांस्कृतिक विकास के लिए सरस साहित्य से उत्तम कोई साधन नहीं
है । अब लोग यह भी स्वीकार करने लगे हैं कि कहानी कोरी गप्प नहदीं
है, श्रौर उसे मिथ्या समसना भूल दै । श्राज से दो हज़ार वष पहले
यूनान के विख्यात फिलासफर अफ़लातून ने कहा था कि हरएक काल्पनिक
रचना में मौलिक सत्य मौजूद रहता दै । रामायण, महाभारत श्राज
भी उतने ही सत्य हैं, जितने श्राज से पाँच हज़ार साल पहले थे, हालांकि
इतिहास, विज्ञान श्रौर दर्शन में सदेव परिवतन श्रौर परिवर्घन होते
रहते हूँ । कितने ही सिद्धांत जो एक ज़माने में सत्य समझे जाते थे,
्राज झसत्य सिद्ध हो गए हैं; पर कथाएँ झाज भी उतनी ही सत्य
हूँ; क्योंकि उनका सम्बन्ध मनोभावों से दे श्रोर मनोभावों में कभी
परिवतंन नहीं दोता । किसी ने बहुत ठीक कहा दे कि “कथा में नाम
शरीर सन् के सिवा सब कुछ सत्य है, श्रीर इतिहास में नाम और सन्
के सिवा कुछ भी सत्य नहीं ।* गढपकार अपनी रचनाश्रों को जिस साँचे
में चादे ढाल सकता दे, किसी दशा में भी वह उस मद्दान् सत्य की
श्रवहेलना नहीं कर सकता, जो जीवन-सत्य कहलाता है ।
बनारस
अगस्त १४३३ *मचरद
न है रन
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