हिन्दी विपूव कोष | Hindi Vipuv Kosh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Hindi Vipuv Kosh  by नगेन्द्रनाथ वसु - Nagendranath Vasu

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नगेन्द्रनाथ बसु - Nagendranath Basu

Add Infomation AboutNagendranath Basu

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मेनघ मण्यजञातिके . अधिकांश लोग सुसलमाना घममेमें दीस्िंत हुए हैं। सबसे पहले द्वीपपुज्नझो एक्निस जाति ने १००६ ई०्में सुमरमानी घर्म श्रदण स्यिा । पीछे ! मल्क्ाको मल्यचातिने १२७६ देग्में, मरफ़ायासीने | ४३८ इण्में बीर सेलिघिसयासीने १४८५ ई०्में उत्त चरम को अपनाया | ये लोग ज्षवरदस्तो मुमलमान नहीं बनाये गये हैं | अरवदेशीय य्णिकोंनि तथा अन्यान्य , सुसलमान धर्म प्रचारकोनि मल्यजञातिकें साथ हेरमेठ न 1 थे सवाई # फुट होती दै तथा यदद कमरसे पैर तब लटका रहता है। अब ये घर्रमें रहते हैं, तब एकमात्र सारोंको हो काममें रात हैं | परमे वाइर निक्टनेसे समय मल सार (पाचामा) पहन लेते हैं । शिड्ापुरी, सछुमा, चीन मम नादि अनेक फिस्मके पानामे प्रचलित हैं। झठावां इसके वाज़ू जर्था * जाकेट मलय परिच्छदका एक प्रधान अड्ट हैं। जो मक़ा-तीर्थ जाते दे वे समा पगडी पहन लेते है । अर अपनी घुद्धिमत्ता और सम्यतास इन लोगोंके , मलय-द्ोपपुल्े, ( 0१९ «टोफलपट्र० ) मक्का चितको शाकपेण बूर स्या था । घीरे घोरे उन लौगॉकि मध्य थापसमें आदानप्रदान होने रगा । इस | प्रकार नाना. कारणोंसि. मलपज्ञातिने स्यच्छासे प्रणालोंक पूर्पय्ती द्ोपसमूद । धट्ोपसागरस्थ तन सेश्मि तारवत्तों मारगुइ द्वोपपुज्र मी कभी कमी इसी न्ॉमसे पुकारा जाता है । महग्मदका उपदेश अपनाया । मल्य उपदीपके अधि | सल्य-तेनसेरिमक दश्षिण प्रान्तसे ले कर धिघुयरेखा यार्सियोंमिं कोई कोई जात भो मूतिपूजा करते देखे जाते तक कसे कम ५०० मील विस्तृत पक देशभाग। इस हैं । यपद्योपका पहाड़ी जाति दिदुघर्मावलम्बी हैं, का परिसर ५० मीलसे ६७० मीर और भूपरिमाण यद्द पद्वरे दो कद्दा जा युवा दै | इन लोगॉम भी बहुत | ८३००० बर्ममील है। अट्ललमय पर्मटमाला इसके मध्य से कुसस्कार प्रचन्ति हैं । ये रोग उक्ष, नटी यायु | मागसे हातों ,ई बहुत दूर तर चली गई है । आदिफो मी देयता समन कर पूते हैं | यत्तेमान समयमें मलय उपदापका अधघिकाश स्थान मलय लोगोंमें कोई देशोय सादित्य दू्खनेमें नहा | श्पोम और अ गरेजोंके झधिकारमें है । इए्इणिडया आता |. पारस्थ, अर, इयाम मादि देशोय प्रथादिको '. कम्पनोने १७54 इनमें पेना, १७६८ इनमें वेलेसली प्रदेश, थे लोग पढ़ने हैं। इनरोगोंकि मध्य कपल 'हातुया' |. १८२३ इनमें शिद्वापुर मीर १८२४ ई०में मलकाकों दूपल नामक एक उपन्यासब्रा शयार देखा नात। दै | | स्या। ये सब स्थान १८६७ इ० तक उत्त क्म्पनीफे सरय लोगेकि मय प्रचलित प्रधा,-्यूरोपयासि | हो दपल्म रदे। पीछे यदद अ गरनोंके फू स्वाधोन गण सादर सम्मापणक समय पक दूसरेका मुख चूपते | प्र शासनकर्तकि दाथ सौंपा गया । उस समय इसरा हैं, मलयगण आपसे नाक मल्ते हें। अधिकाश लोग |. नाम हुआ 'प्ट्रेट सेट रमेएट' । जूना खेलना पमन्द करने हैं 1 सुर्गियोकों लड़ाई इनके मरयके मधिकाश स्थानोम मरयतापतिका चास मध्य पफ विशेष आमोदकों विस है । सुमावायासियों | है। इसके अतिरिक्त सोम, यदुन आदि जातिका भी के मध्य गेदका सेल प्रचलित हैं। मलपयासिंगण ! वास दखा ज्ञाता है। इनसी नाक चिपटी, होठ मोटे अतिशय सट्ीतप्रिय हैं। दी पायप बके मध्य लड़ाई. भीर वार छोटे लथा घुघराले होते हैं। यदा राइयत के डफेका छोड़ कर और कुड़ भी नहीं हैं। इन लोगोंमें , भयदा ओरडूलीतू नामक समुदवासी एक शोक 'म्योद' नामक नाटक सेल्तें देखा जाता है जोग रहते हैं। थे लोग अकसर मछ रो स्व कर अपना वे रोग अपने दाथसे तरद तरदक दृथियार बनाते. शुज्ञारा चलाने हैं। थे नितात दुद्दन्त मसदिग्थु है। तलयार, बछा, कमान आदि युराखरों काममे , ' सद्लातप्रिय और शिन्पकायर्म निपुण हैं । लाते दे । फेदा पेंगक सेलड्ोर, नेप्री सेम्विलिंग और शुट्टाइ उज्ञाज्न नामक राज्य उपदोपके सध्ययर्तों है । केदा नामक याशाक पहनते हैं । इस सागोका घेर ४ फुट औीर | राज्य वा नदीसे नियान नदी तक दिल्‍नूत € । फदाके फ्ण, 51६ 3 मनयदासोबा परिच्छद «-खींपुरप नोनों दो 'सारो'




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now