सहु सयाने एकमत | Sahu Sayane Ekmat

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Sahu Sayane Ikmat by छपनलाल शास्त्री - Chapanlal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २) यह नितान्त वाल्ठनीय है कि जन-जन मे समता, समस्वय, मंत्री और ग़कता की भावना फंले । पर इसके लिए सबसे पहले एक वैचारिक पृष्ठ- भूमि चाहिए । वयोंकि कमें का बीज विचार में है । जसी विचार-निप्ठा टीगी, लदनुसूप' कर्म का प्रस्फुटन होगा । समन्वय और समत्तामूलक व्यवहार अपने टिकाब के लिए बसी भूमिका चाहते हैं, जो एंतन्सूलक ब्िंचारों से बनी हो । यह बहुत हुए का विपय है कि मुनि श्ीं छन्रमलजी का प्रस्तुत उपकम इस विराट उद्देदय की पूर्ति का अन्यतम साधन है। मुनि शी छप्रमलगी बहुश्नत मनीपी है । माधुकरी उनकी वृत्ति है। सस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, पंजाबी, राजस्थानी आ्ारदि अनेक भाषाओं के जाता घक्‍ता व लेक ै। जैन वाद मय तो उनका अपना विपय है ही, अन्पान्य धर्म-शास्त्रो के भी थे प्रौड़ विद्वान है। एक परिम्नाजक--परिब्रजनशील--श्रमणणील मुनि होने के नाते उन्होंने जीवन ने बहुमूस्य , अनुभव प्राप्त किये हैं। सत्य का केवल सैद्धास्तिक ही नहीं, व्यावहारिक पक्ष भी उन्होंने परखा है । ज्ञान के साथ अनुभूतियों का मेल सोने में सुगन्ध जैसा होता है । मुनिश्नी ने विदव के महत्वपूर्ण वाइ_ मय का आलोडन कर “सह सयाने एयमत' नाभक इस ग्रत्थ मे उन सूक्तियों का तुलनात्मक जाकलन किया है, जिनका जीवन से सीधा शम्वन्ध है। जैन, बौद्ध और वैदिक वाइ मय की मूक्तियों को उन्होंने विभय-विभाजन पूर्वक उपस्थित किया है, जिसकी अपनी विशेष उपयोित्ता है। यदि मननपू्वेवा ड्म सूक्ति समूच्चय था अनुधीतन दिया जाय तो नि.सन्देह जीवन में गहसा एक परिवर्तन आ सकता है । यहीं कारण है, मुभापितों या सूक्तियों का साहित्य में बहुत वड़ां महत्व है । मुनि थी वा यह भाकलन जीवन वो दार्शनिक, सामाजिक नैतिक, हक आदि सभी पहलुओं से सरवद्ध है 1 यहू गम्भीर भी है, सरल दा गत थी ॉर अप्रमर होने बी प्र बे व हा । दे और, ध्रवेक्ताओ




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