श्री स्वामी रामतीर्थ | Shree Swami Ramtirth

Shree Swami Ramtirth by परमहंस स्वामी राम - Paramhans Swami Ram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मारत-घष, ध छखे जीवन पर्य्यन्त 'पनी जीविका प्राप्त करने के योग्य चना देते हैूं। ० हर भारत चपे की दान शीलता भूखे मस्त हुए थम-जीवियों . (शी ) की काई अधिक खुघ नददीं लेती, चरन वद ईंदवर के सणडार में पाघाणावत्‌ जड़ बने हुए धर्म के उच्च श्रति- निधियों ( ज्राह्मणं ) को, पदिले दी से तृप्त झालसियों को मोजन दिलवाकर दान शील दाताओं को सीधा स्वर्ग में _ 'जे जाती है। ते २१ पे के डु्बेल-चितत यात्री जो निरन्तर मुफ्तखोरे छालसियों को कुछ नकदी दे देता है; परलॉक में झपनी झात्मा के चद्धार निमित्त कुछ कर लेते से भले ही अपन को सरहद 'सकता दै | चाहे जो भी दो, पर इस में तो दीचत संदेद लद्दी हैं कि उस ने इस समय इस लोक में इस राष्ट्र के पतन करने के लिए छावश्य कुछ कर जाता है। झाघी जनता भूखों मर रही दे । शेष श्याघी तो स्पष्ट फ़जूल-खची, छावश्यकता से 'झधिक सामान; खुगन्ध की चोतलों, मिथ्या गौरव, ऊपरी भभाव वाले व्यवद्दार, समस्त प्रकार की चहुसूल्य व्यथे खेलों, गन्दे धन छोर रोग-जनक दिख।वे ( ज्ञाइरदारी ) से दवी पड़ी है । के ः भारतवर्ष का साधारण युददस्थ सांरे राष्ट्र की दशा का चित्र दे-बहुत थोड़ी सी तो छामदनी, आर तिसपर प्रतिचष खाते वालों की संख्या में दाद्धि दी नहीं; चरन, निंरथेक छौर दुम्खदाई रस्म दासता सावसे झलुचित खर्च ।




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