रेत का घर | Ret Ka Ghar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्
हा रत बा घर 15
आपका सदेह निरथवे है !' वह अपनी काय क्षमता, बुशलता पर 'प्रह्मार होता
देय झुझला गया। उसे अपन पर भरोवा था कि वह लेखन से बाफी कमा समा
हु। उसने विद्यार्थी जीवन म ही साहित्य मे नाम पैदा वर लिया था। बोई पथ
पत्रिका ऐसी न थी, जिसम उसकी रचनाएं ने छपी हो 1
कुछ दर तक बसरे मे अशोमतीय सोन भरा रहा । कल्पना अन्दर वातें कमरे
म सफर वी तैयारी बर रही थी । मा उनके लिए रास्त वा खाना बना रही थी।
रसोई से कभी-कभी बर्तन खडवन वी आवाज आ जाती थी । कल्पना का सदूंक
को बद कराए-खोलना भी कभी-कभी निस्तव्यता को भंग कर जाता था ! पिताजी
ने खखारकर गला साथ करत हुए कहा--'विवेक, तुम चले जाओ । कल्पना को
यही रहने दो ।'
विवेक के हाथ रुक गये । बुश्शट के बटन हाय की उगली में फसे रह गये ।
उसने पिताजी की और पश्रश्नवाचव' दृष्टि से देखा ।
“मैं ठीक कह रहा हूं, बेटे ! पहले तुम वहा जाकर वाम जमाओ । मकान की
व्यवस्था करो, फिर बाद में बहू वो ले जाना । हरकेश सिंह न अपन अनुभव के
आधार पर कहना जारी रखा--'तुम नही जानते, विवेव प्रदेश मे कितनी दिक्कत
सामने भाती हूँ । कल्पना के रहने की क्या व्यवस्था वी है” निश्चित बात है,
धमशाला अथवा होटल म तो रह नही सकोंगे ।' अततिम वाक्य उन्होंने विदरूप भाव
से कहा था।
“मैंने अपने मित्र राजन को पत्र लिख दिया है 1 व्यवस्था होने तब हम उसके
यहा रहेंगे ।'
हरकेश सिंह कुछ देर तक चुप रहे और फिर बाहर जाने के लिए उठ यडे
हुए । बोले---'मेरी अपनी राय के अनुसार यह ठीक नहीं होगा ।'
“क्या ठीक नही होगा ?' विवक कुर्सी के हत्ये पर पर रखे जूत के तसमे बाघ
रहा था 1 उसने गदन को थोडी-सी जुबिश दे पिता की ओर देखा 1
“न तुम्हे इसलिए पढामा था कि कोई अच्छी नोकरी कर सकी और सुखी
रहो । बुढाप मे हमारी ।' उदोने बात बदल दी । फिर निहायत उदास स्वर में
आगे बोले-- खेर ! जाने दो । हमारा कया ? जमीन से इतना तो मिल ही जाता है
कि हम दो जनों का गुजरा चल सके । अपना तुम जानो!”
'पित्ताजी आप हमारी चिता क्या करते हैं ? आपन अपना कतब्य पूरा वर
दिया । अब मुझे रास्ता खोजना है ।*
“खाक रास्ता खोजोगे ! जो आदमा समझाने पर भी नहीं समझा पा रहा, वह
रास्ता क्या खोजेगा 1” हरकेश सिंह थोडा उत्तेजित हो गये--'एक ही रट लगी है,
साहित्य साहित्य । माना में साहित्य और साहित्यकारो के बारे कुछ नहीं
जानता 1 सारी नजर इन्ही लोगो के बोच मे कटो है । साले सब कज की मय पीने
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