आचार्य हेमचन्द्र | Aacharya Hemchandra
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
215
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वी० बी० मुसलगांवकर - V. B. Musalgaanvkar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घद आचार्य हेमचन्द्र
समान ही है । हेमचन्द्रसुरी के सम्बन्ध में एक जगह ग्रन्यकार स्वयं कहते है कि
इन गाचायें के जीवन के सम्बन्ध में जो-जो बातें प्रवन्घचिन्तामणि ग्रन्थ थे
लिखी गईं हैं, उनका वर्णन करना चर्वित-चर्वेण मात्र होगा । हम यदाँ पर कुछ
नवीन विवरण ही भ्रस्तुत्त करना चाहते हैं। फिर भी प्रबन्ध चिन्तामणी की अपेक्षा
अनेक विशिष्ट भर विश्वसनीय बातों का इसमें सड्लन है । इसमें 'हेमसुरि
श्रबन्घ' आचायें हेमचन्द्र के जीवन से सम्बन्धित है ।
'पुरातन प्रबन्ध सडग्रह' ऐतिहासिक प्रवन्धो एक का संइड्य्रह है जो “प्रवन्ध
चिन्तामणि' से सम्बद्ध है । इसमे हेमचन्द्र के जीवन का विशद रुप से वर्णन
किया गया है । उनके विपय में किवदन्तियों का भी यहाँ संडअह किया थयाहै 1
'पुरातन प्वन्घ-संदह' के हेमचन्द्सूरि के प्रबन्धों मे ८, ५६, ६०, ६१ तथा
<े संख्या के श्रकरणों और “््रबन्घकोश सड्ग्रह' के ८३, ८४, ८४५ तथा ८६
श्रकरणो में समानता है । अतः “पुरातनमवन्ध संडयह' हेमचन्द्र का जीवन लिपि-
बद्ध करने मे अत्यन्त सहायक है । सम्भवत. डॉ. ब्रुल्दर अपने प्रन्य में इसका
उपयोग नही कर पाये 1
आचार्य जिनमण्डनोपाध्याय के “कुमारपाल प्रबन्ध' में विशेष रुप से
कुमारपाल ढारा मान्य हिंसार्थहिसा का वर्णन है । इसमे हेमचन्द्र-यिपयक कोई
नवीन जानकारी नही है । प्रबन्धकोश मे वर्णित जानकारी ही इन्होने भी दी है।
इसके साथ ही जयरसिंहसुरि तथा चारित्र सुन्दरगणि का “कुमारपाल चरित' भी
देखने योग्य है । चन्द्रसुरि का “मुनिसुब्रतस्वामिचरित' “नी इस दृष्टि से उपादेय
ट्ै।
इतने विश्वसनौय प्रन्थ होते हुए भी श्री सोमप्रभाचार्य विरचित
गकुमारपाल श्रतिवोध' तथा. यशपाल के “मोट्राजपराजय' के बिना आचार्य
हेमचन्द्र का जीवन प्रामाणिकता से नहीं लिखा जा सकता । समकालीन होने
से इन दोनों का महत्त्व कहीं अधिक है । श्री सोमप्रभसुरि तथा यशपाल दोनो
ही हेमचन्द के लघुवयस्क समकालीन थे ! “सोडराप्तफ़रराकेय” न्याटक मे देशकन्दट
के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है, यरापि चरिन्नाद्धुन करना उसवा ध्येय नही है ।
विशेष रुप से हेमचन्द्र के उपदेश प्रभाव से तत्कालीन राजा कुमारपाल ने क्सि
१. कि 'चवित चर्वणेन ? नवीनास्तु केचन श्रबन्धा: श्रकाश्यन्ते
प्रबन्धकोश: हेमचन्द्सूरि प्रदत्घ-पृ०
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