पालि - साहित्य और समीक्षा | Pali - Sahitya Aur Samiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मापा का इतिहास श्र पूर्वी बोली को परिवतित वर दिया, विस्तु झधिकाशत- झाधार चहदी बोली रही । उनके धर्ग -ग्रस्थी से इस भाषा को अर्द्धमागधी नाम दिया गया है। मूल पूर्वी वोली से बौद्-घर्म ग्रथो या श्रनुवाद जिन प्राचीन मोरतीय झार्य वोलियो में किया यया, उनमे से एक 'पालि' भी थी । '्रमवण इसको सगघ या दक्षिण विहार वी प्राचीन आपा समक लिया गया है । वास्तव मे यह एक साहित्यिक भाषा थी जो चण्जेन से मथुरा तक फंले हुए मध्य देश की बोलियों पर झ्ाधारित थी । यहूं पदिचमी हिंदी की पूजा थी 1 (१८) गायगर नामक जर्मेन विद्वान का मत उपयुं वत सभी मतों से श्रधिक परिपूर्ण श्रौर ग्राह्म है। इसके म्रनुमार पालि मागधी भाषा का ही एवं रूप है, जिसमे मगवान बुद्ध मे उपदेद दिये थे । यह भाषा मिसो जनपद विशेष वी बोली नही थी +वल्कि सम्य समाज में बोली जाने वाली एक सामान्य भाषा थी; जिसका विकास युद्ध-पूर्व-युग ऐ हो रहा था । इस प्रकार वी अस्तर्भास्तीय मापा मे स्वभावत_ ही श्रनेक योलियों के तत्त्व विधमान थे । य्यपि भगवान बुद्ध मगध प्रदेश के नहीं थे, किन्तु उमवा जोवन कार्य झधिकाशत वही सम्पन्न हुआ था, श्रत- उसकी भाषा पर मगध की चोली की छाप अवश्य पढ़ी होगी । उसे विशुद्ध मागधघी भले दीन कहा जाये, फिर भी घह मागधी पर झाश्रत एक लोकगापा थी 1 वही पालि बहलायी । मतो का वर्गीकरण उपत्त मतो यो ६ वर्गों मे विभक्त विया जा सकता है प्रथम वर्ग में (सस्यां को दृष्टि से) वे मत्त झ्ातत है जो पालि का सम्बन्ध मागधी से जोह्ते है । मत न० है, रे, दे, दे, १४ भर १६ इसी यर्गे के श्न्तगंत है। दूसरा ममुख वर्य उन मतों वो लेकर. बना है, जो पालि को धूर्वी बोली के झनुवाद की वह साहित्यिक मापा मानते हैं जो मध्य देश की वोलियों पर श्राधारित थी भर जो पदिचमी हिंदी की पूव॑जा थी । इग वर्ग में मत न० ११, रैर, रद, १५ श्रोर १७ को सम्सिलित कर सकते हूँ । तीसरे वर्ग के मत न० भर १० के अनुसार पासि लि देव की मापा थी और चौथे वर्ग के सत्त स० इ और € के श्रनुजार यह विन्प्याचल दोष सी भाषा थी । पांचवे श्रौर छठे वर्ग से क्रमश मत न० ७ म्रौर ८ रखे गये है। इनमे थे पहले हे. देश्स्ि, हा० सुनानिकुलार चटर्जी : इ्टर्डॉरयेन परड दिप्दी, सेकचर दा, भाग द




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