ग्रिम की कहानियाँ | Grim Ki Kahaniyan

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Grim Ki Kahaniyan by डॉ॰ विष्णुस्वरूप - Dr. Vishnusvarup

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बोतल में बन्द प्रत लेकिन लड़के ने श्राराम नहीं किया । वह अपनी रोटी खाता हुमा जंगल में जाकर चिड़ियों के घोसलों को देखता फिरा । वह एक बलूत के पेड़ के पास पहुँचा जो पाँच श्रादमियों के बराबर ऊँचा था । वह खड़ा हो कर पेड़ को देखने लगा । वह सोच रहा था कि इसकी बड़ी-बड़ी गाखाश्रों में चिड़ियों के कितने घोसलें होंगे । एकाएक उसे लगा कि पेड़ में से भ्रावाज़ आरा रही है, “मुझे निकालो, मुझे निकालो 1 ' लड़के ने चारों श्रोर देखा, लेकिन कोई भी दिखाई नहीं दिया । श्रावाज फिर सुनाई दी, इस बार वह जमीन में से भ्राती जान पड़ रही थी । उसने भ्राइचये से पूछा, “कहाँ हो तुम ?' श्रावाज़ ने उत्तर दिया, “में बलत के पेड़ की जड़ में हूँ. . . . । निकालो मुझे !' लड़के ने जमीन पर फली जड़ों की श्रोर देखा । दो मोटी-मोटी पुरानी जड़ों के बीच में एक मटमंली बोतल अप्रटकी दिखाई दी । उसने बोतल को खींच कर निकाला । उस पर जब रोशनी पड़ी, तो दिखाई दिया कि उसके भीतर एक छोटे जानवर-सी कोई चीज़ ऊपर-नीचे उछल-कद रही है। बोतल के अ्रन्दर से फिर श्रावाज श्राई-- निकालो मुझे, निकालो मुझे ! ' लड़के ने इस बात का विचार किये बिना कि मुझे कोई हानि हो सकती है, बोतल को खोल डाला । उसमें कि का रण कक बन द कहानियाँ




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