भक्त - बालक | Bhakt - Balak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चन्द्रदास श्ण
पूजनकी कुलरीति है; अतएव तुम आज ही सन्ध्याको वहीँ .जाकर
भवानीके भेंट चढ़ा आना |
थसुरकी आज्ञासे सरढ्हृदय चन्द्रहास सामग्री लेकर
भवानीकि स्थानकी ओर चला । मनुष्य मन-ही-मन कितनी हीं
कुटिल कामना करता हुआ नानाप्रकारसे शेखचिछ्लीकी तरह महर
बनाता है, पर 'करी गोपालका सब होय |'
कुन्तलपुर-नरेशके मनेमें वैराग्य उत्पन्न हुआ, उन्होंने आज
ही राज्य त्यागकर परमात्मपद-प्राप्तिका साधन करनेके ढिये बन
जानेका निश्चय कर लिया, परन्तु जानेसे पूब राजकुमारीका विवाह
करना और किसीको राज्यका उत्तराधिकारी बनाना, ये दो आवश्यक
कार्य करने थे ! राजाने पूर्वनिश्वयके अनुसार मन्त्रीपुत्र मदनको
बुढाकर कहा-'बेटा ! मेरी आज ही वन जानेकी इच्छा है;
चम्पकमाठिनीका हाथ किसी योग्य राजपूत-बाठककों सॉपना
'चाहता हूँ, राज्यका उत्तराधिकार भी 'देना है । हम छोगोंदे.
सौमाग्यसे भगवानने कृपाकर चन्द्रहासको यहाँ भेज दिया है।
चद्द सब तरदसे योग्य है, तुम अभी जाकर चन्द्रददासको यहीं
मेज दो !'
राजारकी वात सुनकर सरछ-इृदय मदनके हर्षका पार न
रहा, वद्द दौड़ा वहनोईंकों घुढाने । प्रिताकी दुरभिसन्धिका उसे
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