जययुक्त श्रीदेवी अष्टोत्तर सहाश्त्रनाम | Jayyukt Shreedevi Ashtottar Sahastranaam
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
49 MB
कुल पष्ठ :
722
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about नवारुण भट्टाचार्य - Navarun Bhattacharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१७)
४-इनातरका वध ब्रह्मह्याकें भयते इन्द्रका
मानतग्ेवरमं छिप जाना; नहुपकों इन्द्रपदकी
प्राप्ति और नहुपकी शचीपर आसक्ति ””” २९८
प-देवताओंका बस्पतिजीते परामर्श; वृदस्पतिकी
सम्मतिफे अनुसार कार्य-सम्पादन; इन्द्राणीपर
देवीकी फूपा, नहुपका मुनियोकी पालकीपर
सवार दोना और मुनिके शापसे नहुपका पतन
तथा उठे सर्पयोनिकी प्राप्ति ” *** ३०९
दै-प्रिविष कम) युगघर्म तीर, सित्तगुद्धि) तीर्थ॑वी
महत्ता सर वशिष्टविश्वमित्रके कठटका वर्णन ३०४. ,
७-विएरजीके मैश्रावारणि नामका कारण और
निमिके नेत्र-पलकॉर्मि रहनेकी कथा *** ३११
८-रैदयवंशी कत्रियोद्ारा भगुवेशी ज्राह्मणोंका
संदार देवीकी पति एक भार्गव ब्राप्मणीकी
लॉपते तेजस्वी याठकंकी उत्तति *** ११७
९-गगवान् शंकरदारा लदमीकों यरदान; अश्वरूप
बने हुए भगवान, विण्णुके द्वारा अध्वीरूपा
छदमीफों पु्रकी प्राप्ति; लक्षमीका पुनः भपने
खस्पको प्राप्त होना... '”' *** १२१
१०-उदमीपुत्र एक्वीरका चर *** र२५
११-राजकुमारी एकांवलीका चरित्र: एकायलीका
कालकेतुके द्वारा एस्ग) एकपीरक्रे द्वारा काल-
फेनुका वध और एकाबली-एकवीरका विवाह ””' ३२९
१२-च्यासनारदसंवाद) नारद भीर पर्वतका परस्पर
शाप-्रदान; नारदको वानस-मुखकी प्राप्ति और
दमयन्तीणि वियाह; दोनें कऋषियोका परसर
शापयोज्ञ तथा गेल... *** *** हेड
१३१-युनि नाख्को मायावश ्रीके रूपकी प्राप्ति)
रोंजा तालप्वणध विवाद) अनेकों पुननपीरेकी
प्राप्ति: रवका मरण और शोक: भगवल्तपासे
नारद्णीको पुन। ख़रूप-ग्रापति *** ३३९
१४-मावान, विष्णुफे द्वारा गहामायाका मदललन्वणन
ध्यातनीकि द्वारा णनमेजयकें प्रति भगवत्तीकी
मदिमाका कंपन न *** परेड
सातवाँ स्कन्घ
१-व्याणजीफे प्रति जगमेजयका पटविययक प्र र४५
२-राना श्र्यातिकी कथाका भारम्भ, सुकन्याके द्वारा
महूर्पि च्ययनके मेत्रीका छेदा जाना; मर्द्पिके
फोपते धर्यातिका रासिन्य भख़स्य दोना; प्यवनका
अपने साथ सुकन्याका विवाद करनेके छिये
कहना और सुकन्याकी प्रसन्नतालि व्यवनके साथ
उसका विवाह स्तरों *१* ३७०
३-सुकन्याद्ारा '्यवनमुनिकी सेवा; अधिनीकुमारं-
का आगमन उनके द्वारा च्यवन श्रूष्रिको नेत्र
तथा यौवनकी प्राप्ति. *”' *** शुभ
इ-च्यवनकों नेत्रयुक्त तयण देखकर शयांत्िका
सदेद। संदेदभन्न। शर्यातिके द्वारा पशानुष्ठन
और उसमे व्यवनकी इपासे अधिनीकुमारको
सोमरसका अधिकार प्राप्त होना? राजा खतका
ब्रह्ललोकमें जाना हेड *** ३५९
५-राजा खेतका ब्रझ्माजीके पास जाना भर उनकी
सम्मतिसे रेवती-बलरामका विवाद इश्वाकुवंश-
का तथा योवनाश्वकी दक्षिण कुक्तिपत मान्धाताकि
लगाका बर्णन पर «०० ३६३
६ू-सत्यन्रतका बरिशंकु नाम होनेका कारण: भगवतीकी
कृपासे संत्यत्रतकी शापपमुक्ति) सत्यम्रतका सदेद
खर्ग जनेका आग्रह; वशिष्ठके द्वारा सत्यन्रतको
शाप) दरिश्रिद्धकी कथाका प्रारम .... ”** ३६७
७-न्िशंकुपर विश्राभित्रकी कृपा; विश्वमित्रके तपो-
वच्छसे निशंकुका सदेद खर्गगमनहर्िशिचन्द्रवी कथा ३७२
८-सजा इरिश्रि्द्पर विश्वामित्रकां कोप तथा
विश्वामित्रकी कपटपूर्ण बातोंगिं आकर हरिधग्द्रका
राज्यदान, दक्षिणके छिये हरिश्रत्दके साथ
विश्वामित्रका दुर्वह्दार ””* **' ३७५
९-विश्वामित्रकी दक्षिण चुकानेके छिये राजा
दुरिश्रद्धका काशीगमन; सनीते बातचीत)
ब्राह्मणके दाथ रानी और राजकुमारका विक्रय '* ७९
१०-इुऱ्ित्द्रका चाण्डालके दाय विककर विधामित्रकी
दक्षिण चुकाना भौर चाण्डाटके भशानुखार
दमशञानघाटका काम सैमालना , *** १८४
११-चाण्डाठकी आज्ञसि दरिश्रन्दरका दमशानधाठपर
मा हक ००० ३८६
१२-सौपके काटनेंते रोदितकी मायु) रानीकां बिछाप
और उनके प्रति वाण्डालका दुदंस व्यवहार * ” २८७
१६-राना इर्धिद्ध और रानी शैव्याका परसर
परिचय; शरीरत्यागंकी तैयारी) देवताओंका
आगमन और इर्मित्का अयोध्यावाधियेंकि
साथ ख़र्गगमन रह *** ३९०
User Reviews
No Reviews | Add Yours...