जययुक्त श्रीदेवी अष्टोत्तर सहाश्त्रनाम | Jayyukt Shreedevi Ashtottar Sahastranaam

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Jayyukt  Shreedevi Ashtottar Sahastranaam by नवारुण भट्टाचार्य - Navarun Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७) ४-इनातरका वध ब्रह्मह्याकें भयते इन्द्रका मानतग्ेवरमं छिप जाना; नहुपकों इन्द्रपदकी प्राप्ति और नहुपकी शचीपर आसक्ति ””” २९८ प-देवताओंका बस्पतिजीते परामर्श; वृदस्पतिकी सम्मतिफे अनुसार कार्य-सम्पादन; इन्द्राणीपर देवीकी फूपा, नहुपका मुनियोकी पालकीपर सवार दोना और मुनिके शापसे नहुपका पतन तथा उठे सर्पयोनिकी प्राप्ति ” *** ३०९ दै-प्रिविष कम) युगघर्म तीर, सित्तगुद्धि) तीर्थ॑वी महत्ता सर वशिष्टविश्वमित्रके कठटका वर्णन ३०४. , ७-विएरजीके मैश्रावारणि नामका कारण और निमिके नेत्र-पलकॉर्मि रहनेकी कथा *** ३११ ८-रैदयवंशी कत्रियोद्ारा भगुवेशी ज्राह्मणोंका संदार देवीकी पति एक भार्गव ब्राप्मणीकी लॉपते तेजस्वी याठकंकी उत्तति *** ११७ ९-गगवान्‌ शंकरदारा लदमीकों यरदान; अश्वरूप बने हुए भगवान, विण्णुके द्वारा अध्वीरूपा छदमीफों पु्रकी प्राप्ति; लक्षमीका पुनः भपने खस्पको प्राप्त होना... '”' *** १२१ १०-उदमीपुत्र एक्वीरका चर *** र२५ ११-राजकुमारी एकांवलीका चरित्र: एकायलीका कालकेतुके द्वारा एस्ग) एकपीरक्रे द्वारा काल- फेनुका वध और एकाबली-एकवीरका विवाह ””' ३२९ १२-च्यासनारदसंवाद) नारद भीर पर्वतका परस्पर शाप-्रदान; नारदको वानस-मुखकी प्राप्ति और दमयन्तीणि वियाह; दोनें कऋषियोका परसर शापयोज्ञ तथा गेल... *** *** हेड १३१-युनि नाख्को मायावश ्रीके रूपकी प्राप्ति) रोंजा तालप्वणध विवाद) अनेकों पुननपीरेकी प्राप्ति: रवका मरण और शोक: भगवल्तपासे नारद्णीको पुन। ख़रूप-ग्रापति *** ३३९ १४-मावान, विष्णुफे द्वारा गहामायाका मदललन्वणन ध्यातनीकि द्वारा णनमेजयकें प्रति भगवत्तीकी मदिमाका कंपन न *** परेड सातवाँ स्कन्घ १-व्याणजीफे प्रति जगमेजयका पटविययक प्र र४५ २-राना श्र्यातिकी कथाका भारम्भ, सुकन्याके द्वारा महूर्पि च्ययनके मेत्रीका छेदा जाना; मर्द्पिके फोपते धर्यातिका रासिन्य भख़स्य दोना; प्यवनका अपने साथ सुकन्याका विवाद करनेके छिये कहना और सुकन्याकी प्रसन्नतालि व्यवनके साथ उसका विवाह स्तरों *१* ३७० ३-सुकन्याद्ारा '्यवनमुनिकी सेवा; अधिनीकुमारं- का आगमन उनके द्वारा च्यवन श्रूष्रिको नेत्र तथा यौवनकी प्राप्ति. *”' *** शुभ इ-च्यवनकों नेत्रयुक्त तयण देखकर शयांत्िका सदेद। संदेदभन्न। शर्यातिके द्वारा पशानुष्ठन और उसमे व्यवनकी इपासे अधिनीकुमारको सोमरसका अधिकार प्राप्त होना? राजा खतका ब्रह्ललोकमें जाना हेड *** ३५९ ५-राजा खेतका ब्रझ्माजीके पास जाना भर उनकी सम्मतिसे रेवती-बलरामका विवाद इश्वाकुवंश- का तथा योवनाश्वकी दक्षिण कुक्तिपत मान्धाताकि लगाका बर्णन पर «०० ३६३ ६ू-सत्यन्रतका बरिशंकु नाम होनेका कारण: भगवतीकी कृपासे संत्यत्रतकी शापपमुक्ति) सत्यम्रतका सदेद खर्ग जनेका आग्रह; वशिष्ठके द्वारा सत्यन्रतको शाप) दरिश्रिद्धकी कथाका प्रारम .... ”** ३६७ ७-न्िशंकुपर विश्राभित्रकी कृपा; विश्वमित्रके तपो- वच्छसे निशंकुका सदेद खर्गगमनहर्िशिचन्द्रवी कथा ३७२ ८-सजा इरिश्रि्द्पर विश्वामित्रकां कोप तथा विश्वामित्रकी कपटपूर्ण बातोंगिं आकर हरिधग्द्रका राज्यदान, दक्षिणके छिये हरिश्रत्दके साथ विश्वामित्रका दुर्वह्दार ””* **' ३७५ ९-विश्वामित्रकी दक्षिण चुकानेके छिये राजा दुरिश्रद्धका काशीगमन; सनीते बातचीत) ब्राह्मणके दाथ रानी और राजकुमारका विक्रय '* ७९ १०-इुऱ्ित्द्रका चाण्डालके दाय विककर विधामित्रकी दक्षिण चुकाना भौर चाण्डाटके भशानुखार दमशञानघाटका काम सैमालना , *** १८४ ११-चाण्डाठकी आज्ञसि दरिश्रन्दरका दमशानधाठपर मा हक ००० ३८६ १२-सौपके काटनेंते रोदितकी मायु) रानीकां बिछाप और उनके प्रति वाण्डालका दुदंस व्यवहार * ” २८७ १६-राना इर्धिद्ध और रानी शैव्याका परसर परिचय; शरीरत्यागंकी तैयारी) देवताओंका आगमन और इर्मित्का अयोध्यावाधियेंकि साथ ख़र्गगमन रह *** ३९०




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