भारत के प्राराचार्य | Bharat Ke Praracharya
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
906
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पं. रत्नाकर शास्त्री का जन्म 29 जुलाई 1908 को भारत में इटावा जिले (U.P.) के अजीतमल में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री रामकृष्ण आर्य था जो एक सुधारक और देशभक्त थे। इसलिए, उन्होंने 5 साल की उम्र में युवा रत्नाकर को वृंदावन में गुरुकुल विश्व विद्यालय में पढ़ने के लिए भेजा, क्योंकि यह भारतीय शिक्षा पद्धति पर आधारित एक संस्था थी और अंग्रेजी के लिए मैकॉले के मानसिक दास बनाने के लिए डिज़ाइन की गई भ्रामक ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के खिलाफ थी।
पं। रत्नाकर जी ने उन्नत आयुर्वेद में सम्मान के साथ गुरुकुल से स्नातक किया। यह गुरुकुल में इस समय था, कि उनकी प्रोफेसर उमा शंकर दिवेदी ने उन्हें आयुर्वेद के इतिहास पर
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपाए भारत वे प्राणाचार्य
यहा मैं यह रुपप्ट कर देना चाहता हू कि प्रस्तुत ग्रन्थ वें विद्वान लेखक श्री रत्वावर
शास्त्री और मुझ में इतना वडा अन्तर नहीं जितना ग्रत्य लेखकों और प्राकक्यन
लेयको मे प्राय रहता हैं। आयुर्वेद के इतिहास का जो विशाल परिचय थी रप्नावर
यानी वा है, बह मुभको प्राप्त नहीं । इस तथ्य का बनुभव तो मुझे इस ग्रन्थ में प्रत्येव
पृष्ठ पर हाता रहा हैं। दमलिये इस प्राकव्थन द्वारा ग्रम्थकार दो सम्मानित वरने का
विचार ही मेरे मन में आना घृप्टना होगी । मैं ता ऐसा मानता हू वि इस उत्दूप्ट ग्रस्थ
था प्रापवयन लिसवाकर चास्तव में घारूी जी ने मु्े वही अधिक सम्मानित किया है ।
मेरे लिये यह गर्व की वात है कि सेरा नाम भी एवं ऐसे ग्रन्य से सम्बद्ध हो गया हैजो
चिडिसा इतिहास वे क्षेत्र में प्रकाशित होते ही एव ऊचा स्थान प्राप्त करने वाला हु
यह ठीय हैं मिं बतेव वारणों से वैद्य समाज तथा वैद्येतर समाज के लोग मेरे
सम्पर्क में अधिक रह है । श्री रत्नाकर शास्त्री का जन-सम्प्क मेरी अपक्षा कम रहा है।
इस ग्रन्थ दे प्रवाधित होने पर वह अन्तर भी कम हो जायगा ।
दो घव्द इस ग्रन्य दे सम्बन्ध में बहना प्रासणिक भी होगा बौर आवदयक भी ।
पच्चीम चपे हुए मैंने इसी ग्रत्य वे लिये भूमिका लिखी थी 1 25 वर्ष पदचान श्री
रलनाकर शास्वी ने बह भूमिवा मुझे लौटा दी है । इस सवधि में थास्तरी जी ने प्राचीन
भारत वे इतिहास और मूगोत का और भी गभीर अध्ययन क्या हैं। नयी सामप्री
एक्स वी है। नए अध्याय लिये हैं। लाहौर मे लिखी गई वह भूमिका इस परिवधित
ग्रन्थ वें निये शायद कुठ पुसनी पड गई हैं। इतिहास वी अूरता में लाहौर को भी भारत
वर्ष से विष्ठिन्न वर विदेश थना दिया । आज लग्दन, पेरिस, न्यूयावं, जाना मेरे लिये
सरन हैं, परन्तु लाहौर जाना बम भव । वहीं लाहौर जो 'घर' था, जिसमें अपनी आयु
मे 20 वर्ष ब्यनीन किये, जिन्हें जीवन का सर्वोत््प्ट समय माना जाता है। उसी लाहोर
में एव मित्र, जो मेरे साथ खड़े वान वर रहे थ, वी पीठ में छुरा घोष दिया गया । उनया
शरीर भारी था, मेण हलवा । मैं भाग सरा भर भाज जीवित हू । सौभाग्यदण एवं
एड गतो-दष्टियन पुलिस अधिकारी, जा मेरे पर्रिचित थे, अपनी पुलिम की टुकडी के
साथ मुझे मिव गये। उनकी सहायता से वापिस लौटवर मैं अपने मित्र वो उठ्वावर
आनुरानय तर ने जा सपा, जहा वह हाद मे आये, और रामम पावर अच्छे हा यये 1
22 अगस्त (सन् 1947) वो ही, देवल दो ही. दिल, पल्यात,, मैं बाप, छा, व लेकर,
लाहौर से सदा व चिय विदा होरर, एवं सैनिय दल के साय, नवीन, सण्टित स्वत
सारतपा में धविप्ट हुजा । बय ता लाहौर एव स्मृति बनकर रह गया है । घीरे-पीरे बहू
स्मृति भी मप्ट हा रही है
पे मा वन मे जाहौर वी चर्चा मैंन वेवज इसलिय नहीं वी दि इस ग्न्य की
म्रयम भूमिया 25 वर्ष पू्व यहीं तियी गई थी, जा अब सरे सामने पड़ी है। यह तो गुर
2:55:
तट हे है जिसे अप्ययन, अस्वपण जौर रदस्योदुघाटन मे श्री
रनाइर शास्त्री नें इतना विराट प्रयन दिया है। ली
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