राव कृष्णपाल सिंह साहिब बहादुर | Rav Kirshnapal Singh Sahib Bahadur

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Rav Kirshnapal Singh Sahib Bahadur by आचार्य श्री आनंद ऋषि

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कर चर दारीत यलन पूर्वक मेरा पालन करने लगे। एक टिन में मदाश्वेताफि श्राश्रमकी श्रोर चलनेके इरादेसे उड चला, पर थोड़ी दी वूर जाने पर थक गया श्रौर वद्दों सरोवरके तीर पर एफ कु जमे सो गया । जब नींद उचटी तब देखा कि सामने एफ व्याघ खड़ा हे । उससे मने बहुत प्राथना की पर उसने एक न मानी । वदद मुक्े श्रपने चाटाल स्वामी के यहाँ ले पहुँचा श्रार मुक्ते चाडाल-कन्याकी सुपुर्द कर दिया । उछ कन्याने मुक्ते एक काठके पीजडेमे रकवा | इस प्रकार कितने दी दिन त्रीत गए । एफ समय सोक्र उठा तो क्या देखा कि में सुप्णुंके पींजड़ेमें वेठा हूँ । फिर यदद कन्या मुझे यहाँ ले श्वाई । इतनी कथा सुन कर राजाने चाडाल-कन्याको बुलचाया । कन्याने श्राकर कददा--दें चन्द्र, श्रापने श्रपना श्रोर शुकका ब्ान्त सुना । में इसकी माता हूँ । मेने श्र तक इसे दुष्कमसे रोका । श्रब श्राप दोनों अपने देदयॉका त्याग करके वाच्छित भोग करो । इतना कह कर कन्या थतर्व्यान हो गई | लदंमीकी त्राते सुन कर राजाको पूवजन्मका स्मरण हो श्राया । इवर वसत- काल झा पहुँचा । कादूचरीने चन्द्रापीड़के शरीरकों मली भाँति श्रलऊत किया । इतनेमें ही चन्द्रापीड़ जीवित हो उठा । वह कादूबरीसे अपना दाल कह रद था छि इतनेम पु डरीक चन्द्रलोकसे उतरा । राजा रानी सच आ्रत्यत प्रसन्न हुए। फिर चद्रापीड़ श्रोर पु डरीक दोनों श्रपनी अपनी प्रियाओोंके साथ रदने लगे । कादूबरीकी मूल-कथा | कार्दपरीकी मूल-कथा वाणुभड़की कल्पनाकी उपज नहीं है । सोमदेवके बा-सरित्तागरमे नरवाइनदत्त राजा के मन्नीने उससे एक कढ़ानी की है । उसका र काथ्चरीका एक ही कथानक है । मालूम होता दे चाणभने उसी कद्दानीका सश्कार किया है | कयासरित्तागरके लेखक सोमदेव ईसाफि वाद चारदर्वी शताब्दीके आरममे हुए । उन्दोंने लिखा है कि उनका प्र थ पैशाची भाषाम लिसी गई गुणाद्य की चूद्त्कघाफा संधतिप्त श्रनुवाद दे । इस य्र थका अब पता नदीं चलता । उफ्टर चुचरके श्रनुमानसे गुणाव्य पहली या दूसरी शताव्दीम हुम्रा । याणुभडकों




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