मेरी धरती मेरे लोग | Meridharti Merelog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रतीकों, फेंटेसियों आदि के माध्यम से रचता है । इस रचनात्व पर देश, काल
ओर परम्परा का निश्चय ही प्रभाव पड़ता है परन्तु जिस उदात्त मानवीय हृष्टि
से बे रचनाएँ उद्भूत होती हैं वे इतनी 'निर्बन्ध होती हैं कि सभी काल की मान-
बता उनसे सम्बोधित होती है । एक बात यह भी ध्यान रखने की है कि कैसा
हो मद्दतु या विश्वकवि बयों न हो, रचता वड़ एक देश और एक काल को ही
है परन्तु उसमे निहित दृष्टि ही उसे देश-कालातीत भी बनाती है । इसीलिए
बड़ा कवि और बड़ी रचना कभी अपना सत्दर्भ, प्रासगिकता और प्रयोजन नही
खोते । रचना मे देश और काल की प्रयुक्ति होती ही इसलिए है कि उन्हें अपने
देश और काल के स्वरूप से मुक्त किया जाए । इसीलिए बडी रचना या बड़ा
कवि सिवाय मानवता के और किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होता । जब भी
कविता अपनी इस मुल आर्ष-प्रकृति से, गुण-धर्म से हटी है तब-तब वह भ्रष्ट
हुई है । लाख राज्यकृपा, संरक्षण या पुरस्कार मिलते रहे हो परन्तु मानवता ने
ते उन्हे भ्रुला दिया है। देश और काल तो ब.्त जाने वाली संज्ञाएँ हैं परन्तु
कविता नहीं । वाल्मोकि या व्यासकालीन या हामर ओर दास्तेकालोन समाज
और काल तो अब कही नही है परन्तु क्या रामायण, महाभारत, अभिज्ञान शाकुन्त-
लम, हेमलेट, आडेसी आदि भी क्या बोत गयी रचनाएं हैं? या हो सकती है ?
कविता के बारे मे कुछ बाते अनिवार्यतः याद रखनी होती हूँ कि उसमे कुछ
तत्व आदिम रहस्यात्मकता, तटस्थ पवित्रता, तिलिस्मोपन', गुण-धर्म विपयय
आदि प्राय: मिलता है । जब मैंने पहलों बार 'मेरी धरती मेरे लोग' पढ़ी तो
मुझे उसकी बुनावट मे एक प्रकार का “'बिबलिको' अन्दाज लगा था, कुछ-कुछ
नीत्शे के 'दज स्पोक जरथुस्त्' जैसा । इस प्रकार को रहस्यमयता कविता मात्र
की प्रकृति मे निहित होतो है । उसका यह गुण तब ओर अधिक स्पष्ट होता है
जब वह सम्बोधन की भाषा ओर मुद्रा ग्रहण करती है। यह काव्य-मानसिकता
दो घार्मिक पैगम्बरता है । जितना बड़ा कवि होगा यह तटस्थ पवित्रता, बिब-
लिकी अन्दाज, आदिम रहस्यात्मकता उतने ही स्पष्ट हांगे। “मेरी घरती मेरे
लोग' मे प्रकृति पात्र भी है और घटना भी । प्रकृति और मानवता की सारी
संज्ञाएँ शेषेन्द्र की सजनात्मक प्रक्रिया मे से गुजरकर जिस प्रकार की रचना-
धर्मिता ग्रहण कर लेते हैं वह देखते ही बनता है, प्रत्येक बड़ा कवि सूत्रात्मक
होने के लिए भी बाध्य होता है क्योकि विराट की प्रस्तुति बिन्दु के द्वारा ही
सम्भव हुआ करती है ।
एक पक्षी के गीत से मैं अरण्य की थाह पा लेता हूँ,।या फिर एक
निर्र से ।'
( रूप
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