राजर्षि ध्रुव। | rajrsi dhruv

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rajrsi dhruv  by चंद्रशेखर पाठक - Chandrashekhar Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ ४ रानी खुनीतिका निवासन । इ--बान्सन्स उर्दू दूद्ुदद्धुन-छीाज किन , दि ख़ूपिश मणम कर, रानीकी प्रसंशा करते हुए उ्ेफन्याकी . खोजमें चढे। वह जानते थे, कि रानी खुनीतिकी साक्ा कोई राठ नहीं सकता । अतः उन्दोंने ख़ुदचि नामकी सत्यन्त रूपचती और उत्तम कुललकी पक कन्या मति परिधम्रवे खोज निकाली और उस्तीके साथ राजा उत्तानपादने शुभ लय तया शुभ मुह॒त्त॑में विवाद किया । चिवाहके दिन राज-सवनकी शोभा मतीच मनोदर दो रही थी | राज-मवचनमें हीरा तथा यहसूल्य जवादिरातोंसे यिना रोशनीके ही उजियाला हो रद्दा था । भवनका ऊपरवाला भाग नाना स्ड्लुके चिन्रोंसे चिचित था 1 _ इस नयी रानीका रूप छावप्य जो कोई देखता था, चही चिस्मित होकर कहता था, कि निःसन्देदद यदद कोई स्वर्ग की [घ <




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