पद्मराग | Padmarag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पद्मराग
महारानी ने कौतूहल और आ्ाश्चय से भरी अ्राँखों से टामरिन की
ओर देखा | बोरलीं--क्या यह सच है टामरिन १
“मेरी अच्छी सम्राज्ञी, श्रापकी बुद्धि मुझसे कहीं अधिक प्रशस्त
तर प्रखर है । कया श्राप समभती हैं, यह सच है ?'”'
“यदि लोग उसके सम्बन्ध में ऐसी कहानियाँ कहते हैं तो वह अन्य
राजाश्ों से भिन्न पुरुष होगा ?””--महारानी ने धीरे से कहा ।!
“निश्चय ही ।”
“क्या वह सुन्दर है !””
“पवे गोरवण हैं; उनकी आँखें बादाम के आकार की भाँति हैं
और उनके हसते ही उषा खिल उठती है ।”'
““उसे मेरे पास मेज दो टामरिन ।””--महारानी ने दृढ़ता-पूवक कहा।
“पवे नहीं आएंगे, महारानी ।””
“फिर सेना भेज, उसे बन्दी के रूप में यहाँ उपस्थित करो; परन्तु
तुम हसते क्यों हो !””
टामरिन कौतूहल से इतना हंस रहा था कि उसका समस्त शरीर
हिलने लगा । उसकी हँसी के प्रभाव में कर महारानी स्वयं हसने
लगीं । उसके बाद वे चुप हो गई' श्रौर टामरिन के उत्तर की प्रतीक्षा
करने लगीं ।
टामरिन अभी हँस ही रहा था । यद्यपि एक सम्राजी के सम्मुख
शपने भृत्य का इस प्रकार हँसना श्रभद्र था; परन्तु टामरिन उनके
विशेष कृपापात्र अनुचरों में था ।
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