पद्मराग | Padmarag

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Padmarag by डॉ. नन्दकिशोर तिवारी - Dr. Nandkishore Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पद्मराग महारानी ने कौतूहल और आ्ाश्चय से भरी अ्राँखों से टामरिन की ओर देखा | बोरलीं--क्या यह सच है टामरिन १ “मेरी अच्छी सम्राज्ञी, श्रापकी बुद्धि मुझसे कहीं अधिक प्रशस्त तर प्रखर है । कया श्राप समभती हैं, यह सच है ?'”' “यदि लोग उसके सम्बन्ध में ऐसी कहानियाँ कहते हैं तो वह अन्य राजाश्ों से भिन्न पुरुष होगा ?””--महारानी ने धीरे से कहा ।! “निश्चय ही ।” “क्या वह सुन्दर है !”” “पवे गोरवण हैं; उनकी आँखें बादाम के आकार की भाँति हैं और उनके हसते ही उषा खिल उठती है ।”' ““उसे मेरे पास मेज दो टामरिन ।””--महारानी ने दृढ़ता-पूवक कहा। “पवे नहीं आएंगे, महारानी ।”” “फिर सेना भेज, उसे बन्दी के रूप में यहाँ उपस्थित करो; परन्तु तुम हसते क्यों हो !”” टामरिन कौतूहल से इतना हंस रहा था कि उसका समस्त शरीर हिलने लगा । उसकी हँसी के प्रभाव में कर महारानी स्वयं हसने लगीं । उसके बाद वे चुप हो गई' श्रौर टामरिन के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगीं । टामरिन अभी हँस ही रहा था । यद्यपि एक सम्राजी के सम्मुख शपने भृत्य का इस प्रकार हँसना श्रभद्र था; परन्तु टामरिन उनके विशेष कृपापात्र अनुचरों में था । द्




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