गिरती दीवारें | Girati Divare
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
598
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपने पाठकों और आलोचकों से । १७
एंड सन्त श्र वर्जिन साइल । मुझे वे बड़े ही रोचक लगे, बिलकुल शरत
बाबू के उपन्यासो ऐसे ! पर जिन अझनुभूतियो को मै व्यक्त करना चाहता
था, वे उस पैटर्न मे ढाली न जा सकती थी । तब किसी ने मुझे रोम्याँ
रोलाँ का 'याँ क्रिस्ताव' पढने का परामशं दिया । मै लाहौर के प्रसिद्ध
पुस्तक-विक्रता 'रामाकृष्णा' के निकट ही भ्नारकली में रहता था । कट
दुकान पर पहुँचा, पर 'याँ क्रिस्ताव' का मूल्य सुन कर चुप रह गया । था
तो उस समय साढे पाँच-छः रुपये, पर तब में भ्रपने खाने-रहने पर बारह-
तेरह रुपये महीने से श्रधिक खर्च न करता था । बहरहाल पड़ोसी के नाते
मैत्री तो थी, एक-भाघ छोटी-मोटी पुस्तक भी खरीद लेता था, वही दुकान
पर चार-छः बार जा कर मैने उस उपन्यास के डेढ-दो सौ पृष्ठ पढ़ डाले
श्ौर उसका पैटन मुक्त ठीक लगा ।
लम्बाई घौर छोटी-छोटी तफसीलों को ले कर चलने वाली शैली की
समस्या तो हल हो गयी, पर साथ ही ऐसा पैठन दरकार था जिसमे नायक
के भ्रन्दर धौर बाहर की उलकनो को भी बुना जा सके । उन्ही दिनो मैने
'वर्जिनिया वृल्फ' भ्रथवा उसी ग्रुप के किसी लेखक का उपन्यास पढ़ा ।
उसमे कु कार्य-सम्पादन नायक के बिस्तर से उठ कर खिड़की तक जाने
अथवा सैर करके श्राने तक ही सीमित है भौर उसी मे उसका सारा जीवन
लेखक ने बड़ी चतुराई से बुन दिया है। यह बुनावट मेरे भ्रनुकूल थी,
इसलिए दोनो को ले कर मैने झपने उपन्यास का पैटर्न बना लिया ।
एक आलोचक ने लिखा है : “उपन्यास (गिरती दीवार) पर “'सरशार'”
का प्रमाव स्पष्ट है, पर उसकी किस्सा-गोई की विविधता नहीं ।” पहली
वात तो यह है कि गिरती दीवारें” किस्सा-गोई के खयाल से नही लिखा
गया--किस्सा-गोई में केवल सुनने वालो का ध्यान रहता है, वे जैसे प्रसन्न
हो, वही ढग किस्सा-गो को भ्रपनाना पड़ता है। यह उपन्यास, जैसा कि मैने
कहा, निम्न-मध्य-वर्ग के युवक के श्रन्दर पर बाहर की उलभानो को दर्शन
थोर कुछ ऐसी श्रनुभूतियों को व्यवत करने के लिए लिखा गया है, जिन्हे
व्यक्त किये विना कई वार लेखक को निष्कृति नहीं मिलती, फिर सरशार
श्
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