धर्मो की एकता | dharmo ki akta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)5.४
सोतिकबाद की अति
-ु&5छ-
आज संसार भर में हम सैघ और लड़ाई कगड़े का वोलवाला
देखते हैं । इसका कारण क्या है ? इसका कारण है भौतिकवाद की
अति और धार्मिक भावना का अभाव । दुनियाँ भर में मारक
अस्त-शल्य इतने चड़े पैमाने पर एकत्र किए गए कि युद्ध के रूप में
उनका फूट पड़ना अनिवार्य हो गया । जब तक अस्थ-शस्त्रों और
विस्फोटक द्रब्यों का यह महाद् भंडार ख़त्म होगा तबतक संसार के
राष्ट्र विनाश के कगार पर पहुँच जायँगे । इसके वाद उनके पुनर्निमाणि
का प्रश्न होगा ।
यह संभव है कि राष्ट्रों में ( और विशेषकर उसके भाग्य-विधाता
नेताओं में ) श्रव भी सद्वुद्धि उत्पन्न हो और युद्ध की विध्वंसक
लपटें संसार के अन्य राष्ट्रों में न फैलने पावें; उनका शीघ्र ही शमन
हो जाय । जगत् के स्ष्टा और पालनकर्ता भगवान् से हमारी प्राथेना
यहीँ है । किन्तु युद्ध के शॉघ्रि समाप्त होने पर भी नवनिर्माण का
सवाल तो उठेगा ही । क्योंकि यदि दुनियाँ को उसी हालत में रहने
दिया जाय जिस हालत में बद्द अवतक रही है तो. लौट-फिर कर
घी कगड़े; चही वेसनस्य और ईइं्प्या हेष उमरेंगे और अधिकाधिक
मयानक युद्धों का सिलसिला लगा ही रहेगा ।
नए ढंग से संसार का निर्माण करने का तरीका कया है? तरीका
है एक 'विश्बन्यापी घर्म' की योजना । बह विश्वव्यापी धर्म जो
समस्त प्रचलित धर्मों का एका स्थापित करे । जो हमारे घरेलू और
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