धर्मो की एकता | dharmo ki akta

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
dharmo ki akta  by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
5.४ सोतिकबाद की अति -ु&5छ- आज संसार भर में हम सैघ और लड़ाई कगड़े का वोलवाला देखते हैं । इसका कारण क्या है ? इसका कारण है भौतिकवाद की अति और धार्मिक भावना का अभाव । दुनियाँ भर में मारक अस्त-शल्य इतने चड़े पैमाने पर एकत्र किए गए कि युद्ध के रूप में उनका फूट पड़ना अनिवार्य हो गया । जब तक अस्थ-शस्त्रों और विस्फोटक द्रब्यों का यह महाद्‌ भंडार ख़त्म होगा तबतक संसार के राष्ट्र विनाश के कगार पर पहुँच जायँगे । इसके वाद उनके पुनर्निमाणि का प्रश्न होगा । यह संभव है कि राष्ट्रों में ( और विशेषकर उसके भाग्य-विधाता नेताओं में ) श्रव भी सद्वुद्धि उत्पन्न हो और युद्ध की विध्वंसक लपटें संसार के अन्य राष्ट्रों में न फैलने पावें; उनका शीघ्र ही शमन हो जाय । जगत्‌ के स्ष्टा और पालनकर्ता भगवान्‌ से हमारी प्राथेना यहीँ है । किन्तु युद्ध के शॉघ्रि समाप्त होने पर भी नवनिर्माण का सवाल तो उठेगा ही । क्योंकि यदि दुनियाँ को उसी हालत में रहने दिया जाय जिस हालत में बद्द अवतक रही है तो. लौट-फिर कर घी कगड़े; चही वेसनस्य और ईइं्प्या हेष उमरेंगे और अधिकाधिक मयानक युद्धों का सिलसिला लगा ही रहेगा । नए ढंग से संसार का निर्माण करने का तरीका कया है? तरीका है एक 'विश्बन्यापी घर्म' की योजना । बह विश्वव्यापी धर्म जो समस्त प्रचलित धर्मों का एका स्थापित करे । जो हमारे घरेलू और




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now