सुबह होने तक | Subah Hone Tak

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Subah Hone Tak by कामतानाथ - Kamtanath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मैं समझ गया उन्होने जरूर मुझे खोजा होगा । मैं चुप रहा । --साफ-साफ़ बताओ । नही तो हड्डी तोड़के रख दूंगा । मैं फिर भी चप रहा तो उन्होने एक झापड मेरे दिया । मैं रोया नही । कम्पनी बाग नहीं गये थे तुम * उन्हीने पूछा । नए्गया था। मैने स्वीकार किया । क्या करने ? दर्शन करने । -ए दर्शन करने ? किसके दर्शन करने ? -एएक बाबा जी आये है वहाँ । असलियत मे उन दिनो वहाँ कोई श्रदूधानन्द या ऐसे ही कोई नन्द- मार्का बडे महात्मा आये हुए थे ।. गोमती के किनारे उनका मडप बना था । कोई बडा हवन आदि हो रहा था जिसमें हजारों लोग शामिल होते थे ।. महात्माजी की सवारी निकलती थी । सोने से जड़ तख्त पर जिसे चार आदमी अपने कधे पर उठाकर चलते थे, वह निकलते थे । बगल मे दो व्यक्ति चाँदी का मोरछल लेकर चलते थे। यह सब मैंने सुन रखा था | किसके साथ गये थे * पिता का गुस्सा कुछ कम हुआ । -मोहत्ले के और लड़के थे । मैंने कहा । -पघर में कट्कर क्यो नहीं गये ? मैं चुप रहा । पिता शान्त हो गये । बल्कि माँ उनपर बिंगड़ने भी लगी कि बिना पूछे-जॉँचे मार-पीट करने लगे हो ।. महात्माजी के दर्शन करने चला गया तो इसमे क्या बुरी बात हो गयी । मैं बाल-बाल बच गया, नहीं तो वाकई उस दिन मेरी हड़डी सलामत न रहती । 20 सुबह होने तक




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