सतमी के बच्चे | Satami Ke Bachche
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२---डीह् बाबा
होने पर मी वह उन्हें क्षमा न कर सकते थे | उन्होंने श्रपनी.बेरवरसी
को ठुरन्त नहीं स्वीकार कर लिया; लेकिन सैकड़ों वर्षों तक बागी बनकरें?ं
छापा मारकर भी, उन्होंने देख लिया कि, अकेला चना माड़ नहीं फोड़
सकता | तो भी पूर्वजों का उष्ण रक्त उनकी नसों में बह रद्दा था ।
लब श्रपने बच्चों को, पेट की छवाला में ललते देखते, तब वे श्रौर
न सह सकते थे । इसीलिए, नीविका के लिए, मज़दूरी श्रौर सूझर
पालने के श्रतिरिक्त, उनमें से किन्दों-किन्दीं को चोरी का पेशा भी करना
पढ़ता था ।
वे श्रपने पूर्वजों को कितना भूल चुके थे, यह इसी से स्पष्ट
है कि, भर-मातायें कनैला की पुरानी गाथा सुनाते वक्त, श्रपने बच्चों
से कहती थीं--“पदले इस कोट पर एक राजा रहता था, उसको
बढ़ी रानी ने एक पोखरा ( तालाब ) खुदवाया, जिसके नाम पर
पोखरे का नाम “बढ़ी पढ़ा । लहठरी ( छोटी ) रानी ने वह पोखरा
खुदवाया जिसे झाज-कल “लहुरिया' कहते हैं । राला की एक लॉंड़ी ने
भी एक पोखरा खुदवाया, जो उसकीं जाति के नाम पर “नाउर' कद
जाता है ।” वे यद न जानती थीं कि, कनैला का वह्द राजा उन्हीं का
पूर्वन था |
शेरशाद, अकबर, जहदँमीर और शाइलडों के प्रशान्त शासन में भारत
की--विशेषतः उत्तरी भारत की--श्रवस्था बहुत श्रच्छी थी | लूटपाट
त्रौर छोटे-छोटे सामन्तों की मारकाट सक गई थी । यद्यपि श्रौरगजेत्र ने
श्रकबर की शान्ति श्र सहिष्एपुता की नीति त्याग दी थी; किन्तु
उसका युद्ध-क्षेत्र प्रायः दक्षिण-मारत रहा । इस प्रकार सोलहवीं-सन्नदव।
शत्तान्दियों में जन-सखया बढ़ने लगी । लोग श्रनुकूल भूमि की खोज में
घर छोड़कर, दूर-दूर ज्ञाकर, बसने लगी |
सचदवीं शताब्दी के श्रन्त में, सलाँव के पशिडत चक्रपाशि पाँ डे
काशी से विद्या पढ़कर घर लौट रहे थे । रास्ते में एक हिन्दू सामन्त के
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