षोडषग्रंथ | Shhodshgranth
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीमेदुन्दावनेन्दुप्रकटितरसिकानंदसन्दोहरूपः
स्फूजद्वासादिलीठामृतजलघिभरा क्रान्तसर्वो5पि शम्वत् ।
तैस्येवात्सोनुभावप्रकटनहूद्यस्याज्ञयाँ प्रादुरासी-
ज्ूमी ये: सन्मनुष्याकृतिरिं तिकरुगिस्तं अरपधि हुताशम् । १
भावाधे--हमेशां, श्रीवृन्दावनेन्दु ( हरि ) ने प्रकट कियो जो
रसिकनको आनंद समूहरूप,सुन्द्ररासकों आदिछेकें जो छीछा;सो
एक अम्ृतसिन्घु ताके प्रवादसूं आझ्ावित करदिये हें सबेजन
जाने; ऐसे, जो श्रीमद्छभाचाये, और अपने प्रभावके प्रगट करवेकी
है इच्छा जाकी,; ऐसे उन्ही श्रीमदुन्दावनेन्दुकी आज्ञासूं भूतरुपे
अतिकरुणा करकें मनुष्याकृतिकों घारण करते अकटभये. उन
अभ्िस्वरूप श्रीवललभाचायेके, में झरण जाऊं हूँ ।
कॉंडेन समास--श्रीमच तदुन्दावनं च तस्य इन्दुः, तेन अकटितो
यो रसिकानंद्संदोहरुपः स्फूजंद्रासादिलीलाइसृतजलबथिभरः, सेन आक्ान्त
से: येन सः । आत्मनः अनुभावः आत्मालुभावः, तस्प श्रकटने हृदय यस्प
User Reviews
No Reviews | Add Yours...