अंग्रेजी के बारे में हम क्या करेंगे | Angrajike Bare Me Ham Kya Karenge
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
937 KB
कुल पष्ठ :
38
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कुछ और मत श्७
कारण रही हैं। विदेशी भापाकी पाठ्यपुस्तकोंके कारण तथा विदेशी भाषामें
ग्राध्यापकोंकि पहानेके कारण विद्यार्थीके लिए चैकह्पिक विपयोंके नये और
विलिप्ट अयदं यूढ़ विचारोंको समझनेकी कठिनाई, अतिशय बढ जाती है।
हमारे देशमें, विशेषतः स्वाधीनता-प्राप्तिके बाद, विदेशी मापकि माध्यमकी
प्रथा जारी रखनेका एकमात्र उचित कारण वह महत्त्व है, जो हम आज भी
अप्रेजी भायाकों प्रशासनिक कार्य तया. सरकारी नौकरियोंके लिए एक
आवश्यक योग्यताकि रूपमें देते है। शैक्षणिक दृष्टिकोण विदेशी भाषा
माध्यमका कोई बचाव नहीं किया जा सकता। भारतके सिवा दूसरा कोई
स्वतंत्र देश पब्लिक सविसकी परीक्षायें दिदेशी भाषामें लेनेकी स्वप्नमें भी
कल्पना नही करेगा । लका जैसे छोटेसे देशनें भी, जो हमारे साथ ही स्वतथ
हुआ था, १ जनवरी, १९६४ से अप्रेजीको हटाकर सिंहलीकी 'राज्यभाषा
बना दिया है।
यदि यह मान लें कि केन्द्रकी राज्यभापाके सम्बन्धर्में भारतके विभिन्न
राज्योंके थीच ऐसा झगड़ा चल रहा हैं, जिसका हल खोजना कठिन है, तो
भी विस्वविद्यालयोर्म हिर्दी अयवा राज्यमाषा अच्छी तरह शिक्षाका माध्यम
हो सकती है। जितने समयमें कोई विद्यार्थी स्नातक होगा उतने समयमें बह
सयोजन-भाषा (लिन्क लैंग्वेज) हिन्दीमें इतनी योग्यता प्राप्त कर लेगा कि
जरूरत पड़ने पर द्प्तरे राज्यों छोगोंके साथ विचार-विनिमय अथवा पत्र
व्यवहार कर सके। यदि वह अखिल भारतीय सेवाओमें सम्मिक्तित होना
चाहे अयवा अनुस्नातक वर्गंका अध्ययन करना चाहे, तो इतनी अवधिमें
वह द्रेसरी समोजन-भाषा अग्रेजीका भी पर्याप्त ज्ञान बढ़ा लेगा। हिन्दी-भाषी
लोगोंके लिए या तो हिन्दीका या किसी अन्य भारतीय भाषाका (दक्षिण
भारतकी किसी भापाकों अधिक महत्त्व देना चाहिये) एक प्रश्नपत्र अनिवायें
बनाया जा सकता है। इससे राष्ट्रीय एकता निश्चित बनेगी और शिक्षाके
विदेशी माध्यमकी कठिनाई भी दूर होगी ।
विदेशी माध्यमको हटाकर शिक्षाका सारतीय माध्यम करनेमें केवल
हमारे स्थापित स्वायं॑ भर हमारी अनावरयक घबराहट ही वाघक बनते हूँ।
विश्वविद्यालयके लगभग प्रत्येक विपयमें अग्रेजीके माध्यम द्वारा शोध करनेवाले
तथा छोघका मार्गदर्शन करनेवाले उच्च कोटिके प्रतिभाशाली विद्यार्थी और
प्राध्यापंकगण पर्याप्त संख्या्भ हमारे यहा उपक्ब्ध है! यहीं शोघकार्यं
हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओंके द्वारा क्यों नहीं किया जा सकता ?
अथवा अमुस्नातक ब्गोके विद्याधियोंके लिए भी हिन्दी अयदा अन्य भारतीय
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