बृहत्तर भारत | Brihattar Bharat
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
586
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बहादुरचन्द्र जी छाबड़ा - Bahadur Chandra Ji Chhabda
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(ड)
“रघु ने दिग्विजय की थी; राम ने ल&्का जीती थी; अजन ने पाताल देश
तक विजय की थी । नालन्दा और तक्षशिला के विद्याकेन्द्र यहीं थे;
' जिनमें. दूर दूर के देशों से विद्यार्थजन शिक्षा प्राप्त करने श्राया करते
थे । अ्रविष्ठ न हो सकने पर हाथ मलते हुए; रोते रोते अपने देशों को
लौटा करते. थे । हन-स्साड और फाहियान ने इन्हीं विश्वविद्यालयों
में शिक्षा पाई थी । चीनी लोग भारत को शाक्यमुनि का देश समझ
इसकी तीर्थयात्रा को छाया करते थे । जब मैं छुछ बड़ा हुआ तो पता
चला कि 'ब्रहडत्तरभारत निर्माण की अपनी उसझ्ों को थी भारतीयों
ने चरितार्थ किया था । अशोक ने घ्मविजय करके मिश्र और यूनान
. तके अपनी संस्कृति फैलाई थी । अपने प्रिय पुत्र मद्देन्द्र और पुत्री
:संघसिन्रा को भगवान् बुद्ध का सत्य संदेश सुनाने सिंदलद्वीप भेजा
था। कुसन और यश उुर्किस्तान में भारतीय संस्क्रति को ले गये थे 1
कुछ प्रचारक चम्पा और मिश्र तक भी पहुँचे थे। मैंने यह भी पढ़ा कि
देवानास्प्रियतिष्य के समय जब सीलोन को ाध्यात्मिक प्यास लुभाने
के लिये कोई ख्रोत दृंढने की आवश्यकता हुई; तो उसने अशोक से
प्रार्थना की । जव मिडती के समय चीनी सम्राट को नये प्रकाश की
चाह हुई; तो उसने बुद्ध को शरण ली। ज॑व तिव्वत को आत्सिक
उन्नति की तड़प अनुभव हुई; तो उसने शान्तरक्षित; पद्मसम्भव और
अतिशा आदि भारतीय पण्डितों को ही निमन्त्रित किया । जव 'झरव
को साहित्य; कला और विज्ञान की अमिलाषा हुई; तो उसने भारतोय
पण्डितों और शास्रों का स्मरण किया। झत्युशय्या पर पड़े हुए
खलीफा के प्यारे भाई की चिकित्सा करने वाल! जब सारे अरब में
कोई दुंढे न मिला; तो एक भारतीय वैद्य ने ही उसे सृत्यु के मुख से
खींचकर वाहिर निकाला । जब मज्ञोल सम्नादू छुवलेईखां को अनुवादकों
की चाह हुई; तो उसने भारत पर दृष्रि डाली । कोरिया यदि असः
से सभ्य बना तो चौद्धघम के कारण । जापान की जागृति का मूल
कारण वौद्धघर्म ही तो दै। मैंने यह भी पढ़ा कि जावा; कस्वोडिया;
व्रेनाम आदि तो हमारे उपनिदेश श्रे ! वहां के राजा तो शिव; विष्णु
और चुद्ध को पूजते थे । वेयन का शिवमन्द्िरि; झाडू कोर का विष्णणु-
भन्दिर तथा वोरोवुदूर का वौद्धमान्द्र आाज भी कला; विशालता चर
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