भारतीय धर्म एवं अहिंसा | Bhartiya Dharm And Ahinsa

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Bhartiya Dharm And Ahinsa  by कैलाशचंद जैन - Kailashchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तुति विद्रद्वर सिद्धान्ताचायें पं० केलाशचन्द्रजी शास्त्री की यह पुस्तक भारतीय घर्म ओर अहिसा' अनेक अ्थों में एक विधिष्ट और विलक्षण कृति है । अहिसा, भारतीय विचार पद्धति, और विशेषकर जेन द्लेन तथा जैन जीवन-चर्या का मूलभूत सिद्धान्त है। इस विषय पर अनेक पुस्तक लिखों गई हैं । जैनघ्म से सम्बन्धित कोई भी सम्मेलन हो, शेर भी आयोजन या संगोष्ठी हो जिसमे किसी भी वक्ता को धरने यां चमोंगें पर कुछ बोलना हो, अहिंसा की श्रुद्ठी पर ही उसके विचारों का लग: घूमेगा। इसी बीज पर विषय का थादप पनपेगा, पल्लवित और वुच्क्ति होगा । महान आचायों ने अहिसा पर जो चिन्तन कियो हैं, मन क्गि» काय की भूमिका पर इसे श्रश्यापित करके कर्मों के आस, कली और नि्जेरा का जो व्यापक संसार रचा है, वह विदव के समग्र दर्शन» शास्त्र, मनोविज्ञान और श्रमाजशास्त्रीय अध्ययन में इतना अपूर्ण कौर अद्भुत है कि भारतीय प्रज्ञा इससे गोरवान्वित हुई है । बड़ी बात यह कि अहिसा-चिन्तन के इतने बड़े प्रसार को जीवन के साथ जोड़ने की कला भी जेन तोर्थकरों और आचार्थों की देन है । अहिंसा के विक्ाइ और व्यवहार को गहरी छाप अन्य घर्म-प्रव्तेकों के जिल्तन ओर जीघन निर्देश में प्रतिविस्वित है । ऋग्वेद के ऋषियों की ऋचाओं से लेकर गांधी, अरवित्द और विनोबा के वचनों प्रवचनों तक यह परम्परा चली है । अहिसा-दशन राजनीति में सत्याग्रह के रूप में अवतरित्त हुआ और उसने इतिहास में चमत्कार उत्पन्न किया । अह्िसा के चिन्तन और प्रतिपादन में हिसा का संदर्भ स्वभावत: आता है, किन्तु अब तक हिसा के विद्रूप की लोसहर्षक, प्राणों को हिला देने वाली छवि आंखों से ओझल रखी गई हैं। कारण यह कि इससे अनेक धघामिक सम्प्रदायों के ऋषियों और महापुरुषों की छवि घूमिल होती है। 'घूमिल' शब्द तो बहुत शिष्ट है--वास्तव.में उनके हारा प्रति- पादित हिसक विधान मुख पर कालिख पोत देता है.।




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