रणधीर सिनहा की रचनाएँ | Randheer Sinha Ki Rachnaen

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Randheer Sinha Ki Rachnaen  by रणधीर - Randhir

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कक । । । एक दिन को डाथरी £ मात, १६५६ के आज उमाकान्त सुझकसे अपनी पत्रिका के सिए रचना माँगने झाया था । वह तरुण लेखकों की एक संस्था बना रहा है । उसी की ओर से पत्रिका निकालने का आयोजन कर रहा है । तरुण जिस उत्साह से£काय करते हैं, बह सराहनीय होता है । उमा की क्रियाशीलता मुझे छू गई है । ाज वह अपनी पत्रिका के सहायताथ नगर के दो. कीतिंवानों के यहाँ गया था । पहले कीर्तिवान नगर के लब्धश्नतिष्ठित दानकर्सी प्रकाशक थे। उन्होंने उमा से उसका निवेदन सुनकर कहा :--“में किसी छोटे अखबार की सहायता नहीं करता, फिर नवयुवक क्लब का क्या भरोसा 2 नवयुवक जोश में आकंर अखबार निकालते हैं मगर पंसे का उपयोग करना. नहीं जानते । इसलिए क्षमा कीजिए में लाचार हूँ । यों साहित्य-सम्मेलनों परिषदों तथा ख्याति प्राप्त गो्रियों को मैंने पवीस हजार तक की रकम दी है और देता रहूँगा ! पहले आप अपने अखबार के लिए बड़े लेखकों के लेख जुदाइए । तब मैं आपकी पत्रिका छाप दू गा ।” दूसरे कीर्तिवान, नगर के प्रतिष्टित लेखक थे । उन्होंनेधकहा था :-'मैं किसी छोटे अखबार की सहायता नहीं करता । नवयुवक *जोश में आकर... अखबार निकालते हैं, मगर रचनाओं का उपयोग करना नहीं जानते ।. इसलिए क्षमा कीजिए मैं साचार हूँ ! यों सासिंक, त्रेमासिक आदि पत्रों. _ को मैंने अपने लम्बे उपन्यास तक दे डाले हैं! मेरी रचनाओं की फीस. अधिक होती है । पहले आप किसी बड़े प्रकाशक को खोज निकालिए जो अच्छा पारिश्रमिक रचनाओं पर दे सके । लेख तो आपको यों ही मिल. जाएँ गे ।” नव :




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