रणधीर सिनहा की रचनाएँ | Randheer Sinha Ki Rachnaen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कक
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एक दिन को डाथरी
£ मात, १६५६ के
आज उमाकान्त सुझकसे अपनी पत्रिका के सिए रचना माँगने झाया
था । वह तरुण लेखकों की एक संस्था बना रहा है । उसी की ओर से
पत्रिका निकालने का आयोजन कर रहा है । तरुण जिस उत्साह से£काय
करते हैं, बह सराहनीय होता है । उमा की क्रियाशीलता मुझे छू गई है ।
ाज वह अपनी पत्रिका के सहायताथ नगर के दो. कीतिंवानों के
यहाँ गया था । पहले कीर्तिवान नगर के लब्धश्नतिष्ठित दानकर्सी प्रकाशक
थे। उन्होंने उमा से उसका निवेदन सुनकर कहा :--“में किसी छोटे
अखबार की सहायता नहीं करता, फिर नवयुवक क्लब का क्या भरोसा 2
नवयुवक जोश में आकंर अखबार निकालते हैं मगर पंसे का उपयोग करना.
नहीं जानते । इसलिए क्षमा कीजिए में लाचार हूँ । यों साहित्य-सम्मेलनों
परिषदों तथा ख्याति प्राप्त गो्रियों को मैंने पवीस हजार तक की रकम दी
है और देता रहूँगा ! पहले आप अपने अखबार के लिए बड़े लेखकों के
लेख जुदाइए । तब मैं आपकी पत्रिका छाप दू गा ।”
दूसरे कीर्तिवान, नगर के प्रतिष्टित लेखक थे । उन्होंनेधकहा था :-'मैं
किसी छोटे अखबार की सहायता नहीं करता । नवयुवक *जोश में आकर...
अखबार निकालते हैं, मगर रचनाओं का उपयोग करना नहीं जानते ।.
इसलिए क्षमा कीजिए मैं साचार हूँ ! यों सासिंक, त्रेमासिक आदि पत्रों.
_ को मैंने अपने लम्बे उपन्यास तक दे डाले हैं! मेरी रचनाओं की फीस.
अधिक होती है । पहले आप किसी बड़े प्रकाशक को खोज निकालिए जो
अच्छा पारिश्रमिक रचनाओं पर दे सके । लेख तो आपको यों ही मिल.
जाएँ गे ।”
नव :
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