मंजरी - सौरभ | Manjarey-sowrabh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही _ ( रंज )
सकता, क्यो कि बहू जानती है कि में उसका सिर पुरन्त काट
डायूँगा | हाँ, दो शिर हों तो चाहे वह उतनी देर चर्ष जि,
जब तक में उसका दूसरा शिर भी न फाट लू 1) -जिन्दें यमराज
लेना चाहते हैं | कही, किस दरिद्र को राजा मना दूँ ? कहीं,
किस सजा को देश से नोहर निकाण! दूँ? हे बरोरू (सुन्दरी) !
छुभ भरा स्वभाव च्ानत दो कि मरा मन तुम्दारे मुस र्प्पी
चंद्रमा का चकोर है । हे जरिये ! आल, पुन, परिजन, प्रजा और
जो इुर्छ मेरे हैं वे सब तेरे नश में हैं । जी से कुछ कपट कहता
होऊँ तो, हे भ।सिनि ! मुके राम की सी बार शपथ है | हँसकर
(मख-नता से) मन को भाने बाली बात (वरदान) माँग लो और
सुन्दर शरीर पर भूषण धारण करो | अपने ढूपय से विचार
कर अवसर कुअवर्सर तो देखो | हे शिय-! कुवेश को शीश
त्याग करों ) हे झामिनि ! तेरी इच्छा के अनुसार नंपर में
. धर घर आनन्द और बधाई के बाजे, बज रहे हैं। सास को
कण हीं युवराज-पद दे रहा हूँ । हे सुलोपने ! (अतः इस आनन्द:
_ झवसर पर मंगल साज सजी | ( तन ) झूठा स्नेह चढ़ा, सेन
नव
और, मुख सोड़कर (मटका करत हँसती हुई न चोली, “( ह्दे
प्रिय ! ) आप “सॉगो-मॉगो” तो कहा ही करते है; पर कभी
देते लेते नरदीं 1 आपने दो वर भुझे-दिये थे उनके भी पाने में
सुभेसन्देद है|”
शान्दाय कोहान न रूठेना; पांतक * पाप; शाप घुघषी;
दिढाई न पबकी करके; झबिदग नवाज पत्ती; कुलद, (फा०
कुगाहू) न्ननोज को आँख को उककन; टोपी; ससिकर न्त चन्द्र
किरख, कोइ (कोक) न चकलार सपास चाज: लाना न बटेर
श
भावाथ॑ सरल है |
्
चे
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