ईश्वर की सत्ता और महत्ता | Eshwar Ki Satta Or Mahatta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
482
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीविजयरृष्ण गो स्वामी १७
ही मूल सत्य हैं । ईश्वरमेंसे ही सब पदार्थोकी सृष्टि हुई है)
प्रत्येक पदार्थमें प्राणरूपसे परमेश्वर ही ओतप्रोत हैं । वे सर्वज्ञ,
सर्वसाक्षी और प्रत्येक घटनाके निरीक्षक हैं । उनसे छिपाकर कुछ
भी नहीं स़्खा जा सकता । वे अन्तयामी, असीम, अनन्त तथा
मन-वाणीके अगोचर हैं, स्वयंज्योति और खयम्भू हैं । वे स्वयं यदि
मनुप्यके हृदयमें प्रकट न हों तो मनुष्य उनके दर्शन करनेमें असमर्थ
है | वे आनन्द, शान्ति और अमृतके निर्नर हैं । वे मट्ठढदाता; पवित्र
और सचेत जाग्रतू भावसे सर्वत्र व्यापक हैं । इस प्रकार ईश्वरके
स्वरूपका विचार करके उनकी प्रूजा करनेको. आराधना कहते हैं ।
समस्त विश्वमें उनकी महिमाके दर्शन कर भक्तिप्रवक उन्हें प्रणाम
करना आराधना है |
ईस्वसके चिन्तनका नाम ही ध्यान है | परमेसवर हमारे हृद्यमें
विराजमान हैं, इस प्रकार सतत चिन्तन करनेसे अन्त:करणमें प्रमुका
प्रकाश होता है और प्रमुकी दिव्य ज्योतिके दर्दान होते हैं ।'****
-. प्रमुका प्रकाश मिलते ही उनका स्तवन करनेकी स्तयमेव्र इच्छा
होती है । उनका युण-कीर्तन और उनकी महिमाका गान ही
स्तवन है । इस स्तवनकी भी समाप्ति नहीं है। स्तवन करते-करते
जव मन आनन्द-सागरमें डवने लगता है, तब उनके चरण-कमलेंमें
आत्मसमर्पण किये विना रहा ही नहीं जाता ।
कद उ७:3 , केक
इ्० स० स० २--
User Reviews
No Reviews | Add Yours...