ईश्वर की सत्ता और महत्ता | Eshwar Ki Satta Or Mahatta

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Eshwar Ki Satta Or Mahatta by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीविजयरृष्ण गो स्वामी १७ ही मूल सत्य हैं । ईश्वरमेंसे ही सब पदार्थोकी सृष्टि हुई है) प्रत्येक पदार्थमें प्राणरूपसे परमेश्वर ही ओतप्रोत हैं । वे सर्वज्ञ, सर्वसाक्षी और प्रत्येक घटनाके निरीक्षक हैं । उनसे छिपाकर कुछ भी नहीं स़्खा जा सकता । वे अन्तयामी, असीम, अनन्त तथा मन-वाणीके अगोचर हैं, स्वयंज्योति और खयम्भू हैं । वे स्वयं यदि मनुप्यके हृदयमें प्रकट न हों तो मनुष्य उनके दर्शन करनेमें असमर्थ है | वे आनन्द, शान्ति और अमृतके निर्नर हैं । वे मट्ठढदाता; पवित्र और सचेत जाग्रतू भावसे सर्वत्र व्यापक हैं । इस प्रकार ईश्वरके स्वरूपका विचार करके उनकी प्रूजा करनेको. आराधना कहते हैं । समस्त विश्वमें उनकी महिमाके दर्शन कर भक्तिप्रवक उन्हें प्रणाम करना आराधना है | ईस्वसके चिन्तनका नाम ही ध्यान है | परमेसवर हमारे हृद्यमें विराजमान हैं, इस प्रकार सतत चिन्तन करनेसे अन्त:करणमें प्रमुका प्रकाश होता है और प्रमुकी दिव्य ज्योतिके दर्दान होते हैं ।'**** -. प्रमुका प्रकाश मिलते ही उनका स्तवन करनेकी स्तयमेव्र इच्छा होती है । उनका युण-कीर्तन और उनकी महिमाका गान ही स्तवन है । इस स्तवनकी भी समाप्ति नहीं है। स्तवन करते-करते जव मन आनन्द-सागरमें डवने लगता है, तब उनके चरण-कमलेंमें आत्मसमर्पण किये विना रहा ही नहीं जाता । कद उ७:3 , केक इ्० स० स० २--




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