भारत में व्यापार प्रशुल्क एवं यातायात भाग - 1 | Bharat Men Vyapar Prasulk Evm Yatayat Bhag - 1

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Bharat Men Vyapar Prasulk Evm Yatayat Bhag - 1  by एस॰ आर॰ रैलन - S. R. Railan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भ ब्यापार प्रशुल्क एवं यातायात विदेशी व्यापार के अतिरिक्त, एन्ट्री पोट व्यापार# (एछ06- 00० प8त6 ) में भी भारत प्राचीन काल से भाग लेता आया है। 'एन्ट्री पोट” व्यापार की मुख्य वस्तु रेशमी कपड़ा, चीनी का सामान, जवाह्दरात, मोती, काँच का सामान श्रौर मसाला थीं । प्राचीन भारत के विदेशी तथा “एन्टी पोट” व्यापार के विवरण से देश के आन्तरिक व्यापार का भी 'छनुमान लगाया जा सकता है। व्यापार के प्रमुख प्रकार एवं भारत में उनका मददत्व ( पते 3 96 6 1718 जिएचाप्ीठक्ाठ6 धणि इ0ता8 ) भारत के व्यापार के चार मुख्य प्रकार हैं-- (१) शान्तरिक अथवा श्रन्तरदेशीय व्यापार । (९) समुद्र तटीय व्यापार । (३) चिदेशी अथवा वाह्य व्यापार एवं, (४) “एन्टीपोट' अथवा पुन, नियांत व्यापार । मारत के लिये श्ान्तरिक अथवा अन्तदेशीय व्यापार का महत्व-- ( गशाफ0क्श0९ 0 फए0हाफको पफ8ते6 छि पएतोांक ) जब से कृषि, उद्योग श्रौर यातायात के साधनों में ्ञाविष्कार हुए हैं, तब से विश्व के विभिन्‍न देशों के व्यापार में श्ाशातीत 'एन्ट्रीपोट व्याषार' से श्रइशय पुनः नियात (फ€-6ड 0076) का है, श्रर्थात्‌ विदेशों से श्राये हुए माल को पुनः झन्य देशों को निर्यात कर देना । ऐसे ब्यापार के लिए दो देशों के मध्य में किसी देश की भौगोलिक स्थित ऐसी होनी चाहिए कि जिससे इस प्रकार का व्यापार सरलता से सभ्भव हो सके । इस दृष्टिकोण से भारत की स्थिति बड़ी सुन्दर है । पूर्वीय भूमण्डल के मध्य में स्थित होने के कारण पूर्व श्रौर पश्चिम के बीच होने वाले व्यापार के लिये वह एक सब- भष्ठ विभाम स्थल दे ।




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