श्री तस्मार्ट विवेक मार्तण्ड | Shri Tasmart Vivek Martand

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Shri Tasmart Vivek Martand by विवेकनाथ योगेश्वर - Vivekanath Yogeshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गे (2 संप्रति बहुत से नवीन रोशनी के विद्वान कदलाने वाले व्यक्ति वेद शाख्र पुराणों कों बिना पढ़े ही उसका तात्पर्य न समक करके भी गला फाइद फाइंकर उसकी समालो चना करते हुए देखे जाते हैं. उन अन्त जीवों को कुछ कहना व्यर्थ है क्योकि वे ज्ञानवरा ऐसा करते हूँ किन्तु हसारे कतिपय भारतीय छाय उनको पढ़कर भी किसो कारण से प्रेर्ति होकर जब उसके असली सात्पये से भ्रांखें मूदकर जो चाहते हैं लिख भारते ईं. तथ कोई भी स्वदेशामिमानी भारतीय व्यप्र एवं चकित हे जाता है। बह सोचने लगता है. कि श्रा्यों में झनाये- भावना प्रचार का उदद इय कया है? यद्यपि शाखों के सर्म जानने थाले आर्य इतने पाण्त नददीं हैं कि किसी के कहने से वे श्पने गोरत्ता- प्रही पूर्वजों को गोभक्तक मान लेंगे किन्तु श्रीतस्माते धर्म पर विश्वास रखने वाले किसी श्ार्य के मम में इस प्रकार के प्रचारों से सन्देह तो उतन्न दो हो सचता है.। सम्मावित इस निर्मूत यन्देद को दुर करने के लिये भारतीय श्रौतरमाते प्राचीन विचारों के दिपय में था कुछ कदने के लिये मुमर बाध्य दोना पढ़ा है । इस प्रन्य में कोई नई वात नहीं कहीं गई ई । चेदशास्पाजुकूल दमारे छार्य पूर्वजों का जो सदाचार विचार माम्य रहा दे और है “इसीका केवल यदां स्मरण कराया गया ई। इस घोड़े से संपरदद में वेद शाखों के 'ाधार पर सप्टिकत और युग प्रमाण तणा अइय की स्यायु करप एवं मस्दन्तर के विपय में विचार किया गया है। भार- सीय सनातन संस्कृति, गायों का मइत्व, देववाणी संस्कत के र८




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