श्री सूत्रकृतांग सूत्र | Shri Sutrakratang Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
380
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री सुत्रकृताज्क् सूत्रम्
प्रथम शुतरकंध
' समय नामक प्रथम अध्ययन
स्वसमयवकक््तठ्यता
स्त्राएन'वयााड
घुश़्मिजति तिउट्िजा, चंघणं परिजाणिया |
फिंमाह चंधर्ण चीरो, कि वा जाएं तिउइई १ ॥ १ ॥
झंधे--इसे संसार में कितनेक लोग श्रकेले ज्ञान से मुक्ति मानते हैं तो कई
मतवाले श्रकेली क्रिया से मुक्ति मानते हैं, किन्तु जैन सिद्धान्त के श्रचुसार ज्ञान
छौर फ्रिया-दोनों से मुक्ति द्वोती है । यद्दी मान्यता इस गाथा में प्रदर्शित करते हुए
सुत्रकार कहते हैं--मनुष्य को वोध प्राप्त करना चाहिए और चन्धन को श्र्थात
ज्ञानावस्णु श्रादि त्ञाठ कर्मों को व्ययवा बंधन के कारण मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद,
कपाय एवं योग को श्रयवा झ्ारंभ-परिम्रद को ज्ञपरिज्ञा से जानकर त्यागना चाहिए ।
श्रीसुधर्मा स्वामी के इस प्रकार कहने पर श्रीजम्बू स्वामी प्रश्न करते हैं-
सगवान् महावीर ने बन्घन किसे कहा है ? श्मौर क्या लानकर वन्वन को दूर करना
चाहिए १ ॥ १ ॥।
चित्तमंतमचित्तं वा, परिगिज्क किसामवि |
झण्ण वा अणुजाणाइ, एवं दुब्खा ण मु ॥ २ ॥
हि शर्थ--मनुप्य पशु दि सचित्त तथा दख श्याभूपण मकान श्रादि श्मचित्त
् पदारधों को '्यवा उमय रुप पदार्थों को थोड़ा-सा भी प्रदण करता दै-परिप्रद रुप
प्र
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