एक अनेक | Ek Anek
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९ )
की नगरवध कोशा को गहबधु बना कर अपने साथ घर
लिबा लाने के लिये वह तुला हुआ है। .
सुकेशी -सुना है, बारह वर्षों से वह कोशा के ही साथ रह रहा है
और उस पर बारह लक्ष मुद्वाएँ व्यय कर चुका है ।
सु० शर्मा... --तुमने यथाथ ही सुना है। महामंत्री शकटार अपने पुत्र
स्थलभद्र के व्यवहारों से ऊब चूका था । लोक में उसकी
प्रतिष्ठा घटती जा रही थी । पद-मर्यादा, प्रतिष्ठा और
कुल की लाज की रक्षा करने में वहू सबंधा असम था ।:
जब उसने कोई विकल्प नहीं देखा तो गत रात्रि हमारे
महालय के सरोवर में डूब कर अपने प्राण दे दिये ।
सुकेशी --मुझे भी आदचर्य हो रहा था देव कि जो शकटार अन्य:
अवसरों पर हमारे महालय की. सीढ़ियों तक अपने रथ पर
आता था, गत रात्रि महालय के प्रवेश-द्वार पर ही वह
अपने रथ से क्यों उत्तर गया था |
मुझला पुत्र --भूख लगी है माँ ।
बढ़ा पुत्र. --मूझे भी लगी है माँ ।
सुकेशी हम बन्दी हैं बेटे ।
मं० पुत्र. -क्या ब्दी को भूख नहीं लगती माँ ।
सु० दार्मा.. --लगती हैं बेटा, किन्तु बन्दी लाचार होता है ।
बड़ा पुत्र. --आज सबरे से ही हमलोग उपवास पर है ।
सुकेशी जानती हु बेटा ।
मु० पुत्र... - फिर तो कोई व्यवस्था करो न माँ ?
सु० शर्मा. --थोड़ी देर और ठहर जो । प्रहरी आता ही होगा ।
[प्रहरी का पदचाप दूर से समीप आता है ।]
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