एक अनेक | Ek Anek

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Ek Anek by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९ ) की नगरवध कोशा को गहबधु बना कर अपने साथ घर लिबा लाने के लिये वह तुला हुआ है। . सुकेशी -सुना है, बारह वर्षों से वह कोशा के ही साथ रह रहा है और उस पर बारह लक्ष मुद्वाएँ व्यय कर चुका है । सु० शर्मा... --तुमने यथाथ ही सुना है। महामंत्री शकटार अपने पुत्र स्थलभद्र के व्यवहारों से ऊब चूका था । लोक में उसकी प्रतिष्ठा घटती जा रही थी । पद-मर्यादा, प्रतिष्ठा और कुल की लाज की रक्षा करने में वहू सबंधा असम था ।: जब उसने कोई विकल्प नहीं देखा तो गत रात्रि हमारे महालय के सरोवर में डूब कर अपने प्राण दे दिये । सुकेशी --मुझे भी आदचर्य हो रहा था देव कि जो शकटार अन्य: अवसरों पर हमारे महालय की. सीढ़ियों तक अपने रथ पर आता था, गत रात्रि महालय के प्रवेश-द्वार पर ही वह अपने रथ से क्यों उत्तर गया था | मुझला पुत्र --भूख लगी है माँ । बढ़ा पुत्र. --मूझे भी लगी है माँ । सुकेशी हम बन्दी हैं बेटे । मं० पुत्र. -क्या ब्दी को भूख नहीं लगती माँ । सु० दार्मा.. --लगती हैं बेटा, किन्तु बन्दी लाचार होता है । बड़ा पुत्र. --आज सबरे से ही हमलोग उपवास पर है । सुकेशी जानती हु बेटा । मु० पुत्र... - फिर तो कोई व्यवस्था करो न माँ ? सु० शर्मा. --थोड़ी देर और ठहर जो । प्रहरी आता ही होगा । [प्रहरी का पदचाप दूर से समीप आता है ।]




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