श्रावक प्रज्ञप्ति | Shravak Pragyapti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सदीकथावषकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं । [१९3
अइसंकिलिटुकम्माणुवेयणे होइ थीणगिद्वी उ।.
महनिद्ा दिणचिन्तियवाधारपसाहणी पायम्' 1
अन्रेत्य॑भूतनिद्रा दिकारण कमे अनन्तरं दशनविधातित्वा-
ददनावरण प्राद्यमिति । दर्शनचतुश्यमाह-
नयणयरोहिकेवल दंसणवरणं चउव्विदं होइ ।
सायासाय दुमेयं च वेयणिज्जं मुणेयव्व॑ #१४॥।
[ नयनेतरावधिकेवलदशेनावरण चतुर्विध॑ भवसि ।
सातासातद्मेदे च वेदनीय मुणितव्यम् ॥१४॥ ]
नयनेतरावधिकेवलदर्शनावरण चतुर्विध भवति । आवरण-
शब्द प्रत्येकममिसंबध्यते । नयने लोचन चक्षुरिति पर्याया!
ततश् नयनदशेनावरणं चक्षुदंशनावरण वेति चक्षु्सामान्यो-
पयोगावरणमित्यथे: । इतस्प्रदणादचप्ुदेशनावरण शेषेन्द्रिय-
दशनावरणमिति । एवमवधिकेवलयोरपि योजनीयें ॥ साता-
सातदिमेदं च वेदनीयं मुणितव्य । सातवेदनीयमसातवेदनी ये
च । आल्हादरुपेण यद्देचते तत्सातवेदनीय । परितापरूपेण
यद्ेदते तद्सातवेदनीयें । मुणितव्य ज्ञातव्यमिति ॥
दुविह॑ं च मोहणियं दंसणमोहं चरित्तमोह॑ं च ।
दंसणमोहं तिविहं सम्मेयरमीसवेयणियं ॥१५४॥
[ दिविधं च मोहनीयं दशनमोहनी ये चारित्रमोदननी य॑ च ।
दर्शनमोदनीयं न्रिविध॑सम्यक््त्वेतरमिश्रवेदनीयमू ॥१५॥) ]
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