वर्णी - वाणी | Varni Vani

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Varni Vani  by नरेन्द्र जैन - Narendra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१० अध्यात्मवाद का सही अर्थ हैं. जड़ चेतन सबकी स्वतम्त्र सत्ता स्वीकार करना भर कार्यकारश मावकों सहयोग प्रणांकी के लाघार पर स्वीकार करके व्यक्ति की स्वसस्त्रती को आँच न माने देना । यदि हम इस आधार से वि्वकी व्यवस्था करने के छिपे कटिबद्ध हो जाते हैं तो संसार को समस्त बुराइयाँ सुतरां दूर हो जाती हद व शान्ति और सुब्यवस्था के साथ मानव मात्र को श्रत्येक क्षेत्र में समानता के अधिकार मिछें, कोई जाति पिछड़ी हुई, अछूत भर अशिक्षित न रहने पावे, सख्थियों का वलंमान काकीन असहझा अवस्था से उद्धार होकर पुरुषों के समान वे नागरिकता के सब अधिकार प्राप्त करें, सांप्रदायिकता का उन्मूढन होकर उसके स्थान में बन्घुत्व की मावना नायूत हो और वर्तमान कालीन आर्थिक व्यवस्था का भन्त होकर सर्वोपयोगी नयी व्यवस्था का निर्माण हो ये वर्तमान कार्डन समस्‍यायें हैं जिनके इक करने में अध्यात्मवाद पणे समय दे । पाठकों को वर्शी वाणी का इस हुष्टिकोण से स्वाध्याय करना चाहिये । मेरी इच्छा थी कि इसके कुछ खुने हुये च्राक्य यहाँ दे दिये जाते किन्तु जब मैं वाक्यां को चुनने के छिये उदयत होता हूँ तब यह निणंय ही नहीं कर पाता कि किन वाक्यां को किया जाय गौर किन्हें छोड़ा जाय । इसके प्रत्येक वाक्य से जीवन संशोधन की शिक्षा मिछती है । विइव के साहित्य में इसे तामिछ वेद की उपभा दी जा सकती है । इसके एक एक वाक्य में अखूत सरा पड़ा हैं। पुज्य श्री वर्सी जी ने अपने जीवन सें सब खमस्पाओं पर विचार किया है ओर अपने पुनीत उपदेशों ड्वारा उन पर प्रकाश डाला है। यह उन उपदेशों का पिटारा है । इससे हमें स्वतन्त्रता स्याग, बलिदान, सेवा, कतब्यपरायणता, उदासीनता, अद्रता, मक्ति, मानवधम, सफलता के साधन आदि खभी उपयोगी विषयों की




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