साठोत्तर हिन्दी कहानी - साहित्य में आर्थिक सम्बन्धों का अध्ययन | Sathottar Hindi Kahani-sahity Men Arthik Sambandho Ka Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसके विपरीत नायक गौण हो गया और भोगा हुआ यथार्थ व्याख्यायित होने लगा।”' इन कहानियों
में अतीत से मुक्त वर्तमान में जीने के आग्रह का स्वर था। वह पाखण्ड शोषण, अन्याय व
अत्याचार पर वज़ाघात करती है। कमलेश्वर की कहानी 'बयान' इस बात का प्रमाण है।
सन् ६० के पूर्व की कहानियों में जहाँ सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं व आदर्शों की खोज
थी वहीं साठोत्तरी कहानियों में इसका सर्वथा लोप हो गया और मिथ्या आदर्शों और मूल्यों के प्रति
निर्मम भाव है। साठोत्तरी कहानी भयावह सत्य से जूझने के कारण व्यक्ति की चेतना को झटका
देती है अर्थात उसे सोचने पर मजबूर करती है। परिणामस्वरूप साठोत्तरी कहानी का जो रूप भाषा
व शैली की दृष्टि से सामने आया है वह पूर्ववर्ती कहानी से काफी भिन्न व नवीन था। इन कहानियों
में समसामयिक जीवन की विपन्नताओं व विडम्बनाओं को मुखर किया है। अब कहानियाँ घटना
प्रधान न होकर अनुभव प्रधान हो गयी। आगे क्या होगा जैसी प्रवृत्ति या उत्सुकता अब पाठकों में
न रही और न ही समय बिताने या मनोरंजन का साधन या यात्रा में पढ़ी जाने वाली कहानियाँ ही
रहीं बल्कि बौद्धिक गम्भीरता को धारण किए हैं। इसमें भविष्य के प्रति न कोई आशा है और न ही
विगत के प्रति मोह डॉ० सूबेदार राय के अनुसार “कहानी लेखकों के विचार सूत्र अब सुलझे हुए
दीखते हैं। परम्परा के प्रति अब उनमें कोई लगाव नहीं है।'”* तथापि साठोत्तरी कहानी सुलझे हुए
जीवन मूल्यों की तलाश में है जिसमें रवीन्द्र कालिया, अमरकांत, मार्कण्डेय, शानी, सुधा अरोड़ा,
कमलेश्वर, से रा० यात्री, शैलेश मटियानी आदि साठोत्तर कहानीकार प्रयासरत हैं।
१... स्वातंत्रयोत्तर हिन्दी कहानी का विकास- डॉ० सूबेदार राय, पेज ५४.
२... स्वातंत्रयोत्तर हिन्दी कहानी का विकास- डॉ० सृबेदार राय, पेज ५४
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