सोहन काव्य - कथा मंजरी भाग - 49 | Sohan Kvya Katha Manjari Bhag - 49
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुर सुन्दरियां कर मनुहारे भोजन यहां कराये 1
खड़ी दासियां पंखा डुलायें तब ही आनंद पाये जी 10
सुनकर तीनों भाई क्रोध में लाल पीले हो जायें ।
कुछ कहना चाहे तव ही वहां पिता नजर आ जाये जी ॥
बच्चों बात हुई क्या बोलो गुस्सा कंसे आया |
खड़े क्रोध में क्यों तीनों ही किसने है श्ड़काया जी ॥
कहा बड़े ने तेज सिंह को तुमने ही दिया चिगाड़ ।
लाडप्यार इसने ही अपना जीवन किया उजाड़ जी ॥।
सुतले इसकी बात कोई तो कृूप हाथ से जाय |
फिर तो जंगल से लकड़ी ला वेच रोटी हम खाय जी ।!
सारी बात सुन पति हृदय में क्रोध बड़ा ही छाय ।
तेरे कारण दशा हुई यह आज रहे पछताय जी ॥
उपालंभ दे दिया पिता ने और दिया फटकार ।
तेज सिह सुनकर के मन में करने लगा विचार जी ॥।
नहीं निभेगी इनके संग में छोड़ घर परिवार ।
सारे ही नाखुश हैं मुझसे नहीं रहने में सार जी (1
इनके संग नहीं रहना मुक्कको चला दूर कहीं जा
लिखा भाग्य में होगा मेरे वहीं वहां मैं फाऊं जी ॥
संध्या को चलकर सारे हो घर अपने आ जायें
सो जाये सारे घर चाले निकल बहू तो जाये जी 11
ग्राम के बाहर पथ में उसने बैठा फर्णिघर पाया ।
रात चांदनी चमक रही थी तेज सिंह हर्पाया जी ॥
अच्छे शकुन हुए हैं मेरे हुष॑ हृदय में छाये |
भावि अच्छा होगा मेरा नाग देव वतलाये जी ॥1
अभी अवस्था सोलह वर्ष की निडर होकर जाये ।
खुख्वार पशु वनराज रीछ कई सम्मुख उसके आगे जी ॥1
पुण्य प्रबल होने के कारण पास न कोई आया |
सारी रात चला सिजंन सें नहीं वहू घवराया जा 11
भोर होते ही नगर रतनपुर में वह तो भा जाये |
सोचे इसी शहर के अन्दर काम कोई मिल जाये जी 11
वाजार बीच . में सघन चृक्ष के तले बठ बहू जाय |
शाला से आ रहे छात्र कुछ देख उसे रुक जाय जी ॥।
कहा एक ने कहां से आये. आगे कहाँ सिधाय ।
तेजवान लगते तुम भाई परिचय दो वतलाय जी ॥
वह वोला मैं दूर देश का तेज सिह मम नाम 1
भाग्य भरोसे मैं आया हूं मिले कोई भी काम जी ॥
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