सोहन काव्य - कथा मंजरी भाग - 49 | Sohan Kvya Katha Manjari Bhag - 49

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sohan Kvya Katha Manjari Bhag - 49  by सोहनलाल जी - Sohanlal Ji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सोहनलाल जी - Sohanlal Ji

Add Infomation AboutSohanlal Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सुर सुन्दरियां कर मनुहारे भोजन यहां कराये 1 खड़ी दासियां पंखा डुलायें तब ही आनंद पाये जी 10 सुनकर तीनों भाई क्रोध में लाल पीले हो जायें । कुछ कहना चाहे तव ही वहां पिता नजर आ जाये जी ॥ बच्चों बात हुई क्या बोलो गुस्सा कंसे आया | खड़े क्रोध में क्यों तीनों ही किसने है श्ड़काया जी ॥ कहा बड़े ने तेज सिंह को तुमने ही दिया चिगाड़ । लाडप्यार इसने ही अपना जीवन किया उजाड़ जी ॥। सुतले इसकी बात कोई तो कृूप हाथ से जाय | फिर तो जंगल से लकड़ी ला वेच रोटी हम खाय जी ।! सारी बात सुन पति हृदय में क्रोध बड़ा ही छाय । तेरे कारण दशा हुई यह आज रहे पछताय जी ॥ उपालंभ दे दिया पिता ने और दिया फटकार । तेज सिह सुनकर के मन में करने लगा विचार जी ॥। नहीं निभेगी इनके संग में छोड़ घर परिवार । सारे ही नाखुश हैं मुझसे नहीं रहने में सार जी (1 इनके संग नहीं रहना मुक्कको चला दूर कहीं जा लिखा भाग्य में होगा मेरे वहीं वहां मैं फाऊं जी ॥ संध्या को चलकर सारे हो घर अपने आ जायें सो जाये सारे घर चाले निकल बहू तो जाये जी 11 ग्राम के बाहर पथ में उसने बैठा फर्णिघर पाया । रात चांदनी चमक रही थी तेज सिंह हर्पाया जी ॥ अच्छे शकुन हुए हैं मेरे हुष॑ हृदय में छाये | भावि अच्छा होगा मेरा नाग देव वतलाये जी ॥1 अभी अवस्था सोलह वर्ष की निडर होकर जाये । खुख्वार पशु वनराज रीछ कई सम्मुख उसके आगे जी ॥1 पुण्य प्रबल होने के कारण पास न कोई आया | सारी रात चला सिजंन सें नहीं वहू घवराया जा 11 भोर होते ही नगर रतनपुर में वह तो भा जाये | सोचे इसी शहर के अन्दर काम कोई मिल जाये जी 11 वाजार बीच . में सघन चृक्ष के तले बठ बहू जाय | शाला से आ रहे छात्र कुछ देख उसे रुक जाय जी ॥। कहा एक ने कहां से आये. आगे कहाँ सिधाय । तेजवान लगते तुम भाई परिचय दो वतलाय जी ॥ वह वोला मैं दूर देश का तेज सिह मम नाम 1 भाग्य भरोसे मैं आया हूं मिले कोई भी काम जी ॥ श्‌




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now