दृष्टिदात्री | Dristidatri
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय १ हु
की पूरी-पूरी इच्छा थी कि में झवश्य जाऊँ । वे स्वयं मुमे लेकर जाना
चाहते थे, किन्तु उनके लिए अपने व्यापार-काय को छोड़ना संभव न था ।
मेरी माता को इतनी लम्बी यात्रा के सम्बन्ध में नाना प्रकार की भारी
च्ाशंकाएँ थीं । कुछ मित्रों ने कहा, “तुम उन्मत्त हुए हो, केवल एक कुत्ते
के लिए इतने विस्तारद्दीन समुद्र के पार जाझोगे !” दूसरों ने कहा,
“साँरिस ! यदद सचम्च बड़ा काय लगता है । तुम्हारी हानि ही क्या
हो सकती दै ?””
एक विशेषज्ञ का मत जानने के लिए मेंने झंधों की परकिन्स इंस्टीस्यूट
के संचालक डा० एडवड ई० एलेन को लिखा । उनसे मेरी व्यक्तिगत मेत्री
थी | उन्होंने लिख मेजा, “भी तुम्हारे संमुख लस्बा जीवन पड़ा इुआा
है । तुम्हें परमुखापेक्षी होना कदापि पसंद नहीं । कदाचित् इससे तुम्हारी
समस्या सुलभ जायगी, और यदि तुम्हारी योजना सफलता के पथ पर
ब्श्रसर हुई तो उससे केवल तुम्हारी ही नहीं, तुम्हारे जैसे सह व्यक्तियों
की समस्याएँ भी सुलभ जायँगी, तुम अभी एकदम तरुण हो । सुझवसर
से लाभ उठाने का प्रयत्न करो, केवल अपने लिए ही नहीं, प्रत्युत दूसरों
थी भी भी ।” इस पर सेरी मा समुद्र-यात्रा के प्रस्ताव से सहमत
गई ।
दो सप्ताह पश्चात् मुफे श्रीमती युस्टिस का एक तार मिला जिसमें
सूचित किंया था कि उस दिन, रात को, वे मुझे फोन करेंगी । ज्यों-ज्यों
निश्चित घड़ी समीप झ्याती जा रही थी, मेरे घर के लोगों की उत्कणठा
तौर जिज्ञासा बढ़ती जा रददी थी। में फोन के पास बेठकर घबड़ाहट में
प्रतीक्षा करने लगा । जब अन्त में घंटी बजी तो में विस्मय से उछल पड़ा ।
तब मुझे बढ़े शान्त और सुसंस्कृत शब्द सुनाई पढ़े, “फ्रैंक महोदय !
क्या झाब भी झाप सोचते हैं कि ्ाप अपने कु के लिए स्विट्जर-
लेंड चलना चाहेंगे ?””
में उत्तर न दे सका, मेरा करठ अवरुद्ध हो रहा था । वह स्वर्गिक
वाणी कहती जा रही थी, यद्यपि उसमें चेतावनी झ्र प्रोत्साहन दोनों
संमिलित थे, “अकेले एक अन्घे तरण के लिए यह यात्रा बड़ी लम्बी है ।”
मेंने अपना स्वर सँ भालते हुए चिल्लाकर कहा, “श्रीमती युस्टिस !
झ्ात्म-निभरता को पुनः प्राप्त करने के लिए में नरक तक भी जा सकता हूँ ।”
कवाा
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