महर्षि सुकरात | Maharshi Sukarat

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Maharshi Sukarat by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६, करता है, वद अपने जीवन को कोरा रख लेता दे और जो दूसरों से सीखने की दृष्टि से थाव- रण करता है, वह किपती दिन संसार का मद्दापुरुष कहलाता है । यही बात दम मदद्वि सुझुरात के जीवन में पाते हैं। हमें भी इसी प्रकार का दृष्टिकोण रखते हुये अपने जीवन को उत्तम एवं उन्नत वरना चित हे । ७ शारीरिक गठन सुकरात का नारू और तिर ऊँचे थे। नेत्र तेज भरे थे । चेहरा तथा वक्तःश्यल विशाल और शरीर भारी भरकम था । स्वास्थ्य झच्दा था । उस के सस्प शरीर में स्वस्थ मन था । एक साधारण और मोटा ता रूईंदार चोया दिशेष परिधान ( लिगबात ) था । उसी को धारण कर के एघेन्स नगर के बाजाएं में घूम घूम कर लोगों से तक वितक किया करता था ।




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