श्री संक्राचार्य | Shri Sankaracharya
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्मवोध! ध्
आत्मचेत्तन्वमाश्रिय देहेन्द्रियमनोधिय! ।
स्वकीया्थेषु॒वर्तेन्ते सूर्याठोक॑ यथा जनाः* ॥२०॥
देहेन्द्रियगणान_ कर्माण्यमले सचचिदात्मनि ।
अध्यस्यन्यविवेकेन गगंने सीलतादिवत् ॥ २१ ॥
अज्ञानान्मानसोपा पे! रत त्दादीनि सापति ।
कल्प्यन्तेडम्बुगते चन्दें चठनादि यथार्म्मसः ॥२२॥
रागेच्छासुखदृश्लादि 5द्धी सयां भर्वीते ।
सुपुप्नी नाश तन्नाशे तस्पादुद्धेस्तु नात्मन' ॥ २३ ॥
कि
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प्रकाशो 5सीरय तोयस्य देयमग्े्थोप्णता ।
स्वभावस्पन्विटानन्दनियनिभेलता55त्पन ॥ २४ ॥
आत्यनरपणिदंदाश्र बुद्धडूत्तिरित द्रयमू । . ,
संयोज्य याविवेकेन जानामीति प्रचतेते ॥! २५ ॥
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आत्मनों पिक्रिया नाम्ति दुद्धेबोधी ने जाल्यिति' ।
जीवरस्मर्वभ् शाला कर्ता द्रप्रेंल मुद्यति ॥ २६ ॥
रज्जुसर्पत्रदात्मानं जीपें ज्ञात्या भय सयेतू ।
नाहं जीव! परात्मेति ज्ञातश्रेत्निमेयों भवेत ॥ २७ ॥
आत्माघवभसयसेकों बुद्धयादीनीन्द्याणि हि ।
दीपो घटादिवत्स्वात्मा जडेस्तेनाविभास्णते ॥ २८ ॥
स्ववोधे नान्यव,पेच्छा दोघरूपतया 55त्पन' ।
न दीपस्यान्यर्दीपेच्छा यथा स्वात्मप्रकाशने ॥ २९ ॥
सकेपु चित्कोशेषु शोक्रोथ्य॑ न. दृश्यते.
गजात्वापे, ध्ज्ञाता, *ण्युप्ि
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