श्रीमद राजचन्द्र | Shri Mad Rajchandra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्रीमद राजचन्द्र  - Shri Mad Rajchandra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हंसराज जैन - Hansraj Jain

Add Infomation AboutHansraj Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ रै४ अहो श्री सत्पुरुषके वचनामृत, मुद्रा और सत्समागम ! श्रीमदू राजचन्द्र ऐसे विरल स्वरूपनिष्ठ तत्त्ववेत्ताओमेसे एक है । श्रीमदू राजचन्द्र यानि अध्यात्म- गगनमे झिलमिलाती हुई अद्भुत ज्ञानज्योति ! मात्र भारतकी ही नहीं, अपितु विद्वकी एक विरल विभूति ! अमूल्य आत्मज्ञानरूप दिव्यज्योतिके जाज्वत्यमान प्रकादासे, पु्वमहापुरुषों द्वारा प्रकाशित सना- तन मोक्षमागंका उद्योतकर भारतकी पुनीत पृथ्वीको विभूषित कर इस अवनीतलकों पावन करनेवाले परम ज्ञानावतार, ज्ञाननिधान, ज्ञानभात्कर, ज्ञानमूर्ति ! बास्त्रके ज्ञाता तथा उपदेदाक तो हमें अनेक मिल जायेगे परन्तु जिनका जीवन ही सत्दास्त्रका प्रतीक हो ऐसी विभति प्राप्त होना दुलंभ है । श्रीमद्‌ राजचन्द्रके पास तो जाज्वल्यमान आत्मज्ञानमय उज्ज्वल जीवनका अतरग प्रकाश था और इसीलिये इन्हें अद्भुत अमृतवाणीकी सहज स्फुरणा थी । “काका साहेब कालेलकरने श्रीमदके लिये 'प्रयोगवीर' ऐसा सुचक अथंगभित दाब्द प्रयोग किया है सो सर्वथा यथार्थ है । श्रीमदु सचमुच प्रयोगवोर ही थे । प्रयोगसिद्ध समयसारका दशन करना हो अथवा परमात्मप्रकागका दर्शन करना हो प्रयोगसिद्ध समाधिशतकका दर्शन करना हो अथवा प्रणमरति- की दर्गन करना हो, प्रयोगसिद्ध योगदृष्टिका दर्शन करना हो अथवा आत्मसिद्धिका दर्षन करना हो तो 'झीमदू' को देख लीजिये ' उन उन समयसार आदि शास्त्रोगे बणित भावोका जीता-जागता अवलम्बन उदाहरण चाहि। तो देख लोजिये श्रीमदूका जीवनवत्त ! श्रीमदू ऐसे प्रत्यक्ष प्रगट परम प्रयोगसिद्ध आत्मसिद्धिकों प्राप्त हुए पुरुष है, इसीलिये उनके हारा रचित आत्मसिद्धि आदिम इतना अपूर्व सामयथ्य दिखाई देता है ।'' -श्रीमद राजचन्द्र जीवनरेखा | भारतकी विश्वविख्यातविभूति राष्ट्रपिता महात्मा गाँधोजी लिखते हैं-- “मेरे जीवनकों श्रोमदू राजचन्द्रने मुख्यतया प्रभावित किया है । महात्मा टोल्स्टोय तथा रस्किमको अपेक्षा भी श्रीमदने मेरे जीवन पर गहरा असर किया है। बहुत बार कह और लिख गया हूँ कि मैंने बहुतोके जीवनमेसे बहुत कुछ लिया है; परन्तु सबसे अधिक किसीके जीवनमेसे मैंने ग्रहण किया हो तो वह कवि (श्रीमदू राजचन्द्र) के जीवनमेसे है । ” ” श्रीमदू राजचन्द्र असाधारण व्यक्ति थे । उनके लेख अनुभवबिंदुस्वरूप है । उन्हें पढ़नेवाले, विचारनेवाले और तदनुसार आचरण करनेवालेको मोक्ष सुलभ होता है। उसके कपाय मन्द पढ़ते हैं, उसे संसारमे उदासीनता रहती है और वह देह-मोह छोड़कर आत्मार्थी हो जाता है । इस परसे पाठक देखेगा कि श्रीमद्के लेख अधिकारीके लिये हैं । सभी पाठक उसमेसे रस नही ले सकते । टीकाकारकों उसमें टीकाका कारण मिलेगा, परन्तु श्रद्धावान तो उसमेसे रस ही लूटेगा । टनके लेखोमे सत्‌ हा टपक रहा है ऐसा मुझे हमेशा भास होता है । उन्होंने अपना ज्ञान दिखानेके लिये एक भो अक्षर नहीं लिखा । लेखकका हेतु पाठककों अपने आत्मानंदम साझीदार बनानेका था । जिसे आत्म- क्छेश दूर करना है, जो अपना कतंब्य जाननेको उत्सुक है उसे श्रीमदूके लेखोंमेसे बहुत-कुछ मिल जायेगा ऐसा मुझे विश्वास है, फिर भले ही वह हिन्द हो या अन्य धर्मी | «« जो वेराग्य ( अपूर्व अवसर एवों क्यारे आवशे ? ) इन पयच्चोमे झलझला रहा है वह मैंने उनके दो वर्षके गाढ़ परिचयम प्रतिक्षण उनमें देखा है । उनकें लेखोमे एक असाधारणता यह है कि उन्होंने स्वयं जो अनुभव किया वहीं लिखा है । उसमें कही भी कृत्रिमता नही है। दूसरे पर प्रभाव डालमेके लिये एक पंक्ति भो लिखी हो ऐसा मेने नही देखा |”




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now