श्रीमद राजचन्द्र | Shri Mad Rajchandra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
996
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ रै४
अहो श्री सत्पुरुषके वचनामृत, मुद्रा और सत्समागम !
श्रीमदू राजचन्द्र ऐसे विरल स्वरूपनिष्ठ तत्त्ववेत्ताओमेसे एक है । श्रीमदू राजचन्द्र यानि अध्यात्म-
गगनमे झिलमिलाती हुई अद्भुत ज्ञानज्योति ! मात्र भारतकी ही नहीं, अपितु विद्वकी एक विरल
विभूति ! अमूल्य आत्मज्ञानरूप दिव्यज्योतिके जाज्वत्यमान प्रकादासे, पु्वमहापुरुषों द्वारा प्रकाशित सना-
तन मोक्षमागंका उद्योतकर भारतकी पुनीत पृथ्वीको विभूषित कर इस अवनीतलकों पावन करनेवाले
परम ज्ञानावतार, ज्ञाननिधान, ज्ञानभात्कर, ज्ञानमूर्ति !
बास्त्रके ज्ञाता तथा उपदेदाक तो हमें अनेक मिल जायेगे परन्तु जिनका जीवन ही सत्दास्त्रका
प्रतीक हो ऐसी विभति प्राप्त होना दुलंभ है । श्रीमद् राजचन्द्रके पास तो जाज्वल्यमान आत्मज्ञानमय
उज्ज्वल जीवनका अतरग प्रकाश था और इसीलिये इन्हें अद्भुत अमृतवाणीकी सहज स्फुरणा थी ।
“काका साहेब कालेलकरने श्रीमदके लिये 'प्रयोगवीर' ऐसा सुचक अथंगभित दाब्द प्रयोग किया
है सो सर्वथा यथार्थ है । श्रीमदु सचमुच प्रयोगवोर ही थे । प्रयोगसिद्ध समयसारका दशन करना हो
अथवा परमात्मप्रकागका दर्शन करना हो प्रयोगसिद्ध समाधिशतकका दर्शन करना हो अथवा प्रणमरति-
की दर्गन करना हो, प्रयोगसिद्ध योगदृष्टिका दर्शन करना हो अथवा आत्मसिद्धिका दर्षन करना हो तो
'झीमदू' को देख लीजिये ' उन उन समयसार आदि शास्त्रोगे बणित भावोका जीता-जागता अवलम्बन
उदाहरण चाहि। तो देख लोजिये श्रीमदूका जीवनवत्त ! श्रीमदू ऐसे प्रत्यक्ष प्रगट परम प्रयोगसिद्ध
आत्मसिद्धिकों प्राप्त हुए पुरुष है, इसीलिये उनके हारा रचित आत्मसिद्धि आदिम इतना अपूर्व सामयथ्य
दिखाई देता है ।'' -श्रीमद राजचन्द्र जीवनरेखा |
भारतकी विश्वविख्यातविभूति राष्ट्रपिता महात्मा गाँधोजी लिखते हैं--
“मेरे जीवनकों श्रोमदू राजचन्द्रने मुख्यतया प्रभावित किया है । महात्मा टोल्स्टोय तथा रस्किमको
अपेक्षा भी श्रीमदने मेरे जीवन पर गहरा असर किया है। बहुत बार कह और लिख गया हूँ कि मैंने
बहुतोके जीवनमेसे बहुत कुछ लिया है; परन्तु सबसे अधिक किसीके जीवनमेसे मैंने ग्रहण किया हो तो
वह कवि (श्रीमदू राजचन्द्र) के जीवनमेसे है । ” ”
श्रीमदू राजचन्द्र असाधारण व्यक्ति थे । उनके लेख अनुभवबिंदुस्वरूप है । उन्हें पढ़नेवाले,
विचारनेवाले और तदनुसार आचरण करनेवालेको मोक्ष सुलभ होता है। उसके कपाय मन्द पढ़ते हैं, उसे
संसारमे उदासीनता रहती है और वह देह-मोह छोड़कर आत्मार्थी हो जाता है ।
इस परसे पाठक देखेगा कि श्रीमद्के लेख अधिकारीके लिये हैं । सभी पाठक उसमेसे रस नही ले
सकते । टीकाकारकों उसमें टीकाका कारण मिलेगा, परन्तु श्रद्धावान तो उसमेसे रस ही लूटेगा । टनके
लेखोमे सत् हा टपक रहा है ऐसा मुझे हमेशा भास होता है । उन्होंने अपना ज्ञान दिखानेके लिये एक
भो अक्षर नहीं लिखा । लेखकका हेतु पाठककों अपने आत्मानंदम साझीदार बनानेका था । जिसे आत्म-
क्छेश दूर करना है, जो अपना कतंब्य जाननेको उत्सुक है उसे श्रीमदूके लेखोंमेसे बहुत-कुछ मिल जायेगा
ऐसा मुझे विश्वास है, फिर भले ही वह हिन्द हो या अन्य धर्मी | ««
जो वेराग्य ( अपूर्व अवसर एवों क्यारे आवशे ? ) इन पयच्चोमे झलझला रहा है वह मैंने उनके दो
वर्षके गाढ़ परिचयम प्रतिक्षण उनमें देखा है । उनकें लेखोमे एक असाधारणता यह है कि उन्होंने स्वयं
जो अनुभव किया वहीं लिखा है । उसमें कही भी कृत्रिमता नही है। दूसरे पर प्रभाव डालमेके लिये एक
पंक्ति भो लिखी हो ऐसा मेने नही देखा |”
User Reviews
No Reviews | Add Yours...