उर्दू साहित्य का इतिहास पद्य खंड भाग 2 | Urdu Sahitya Ka Itihas Padh Khand Bhag 2

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Urdu Sahitya Ka Itihas Padh Khand Bhag 2  by धीरेन्द्र वर्मा - Dhirendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उदू गद्य का यारंभ श्र उसका विकार्स हे देदरी को मृखु १८२३ ई० मे हुई, जैला कि डा० छोगर ने ग्वघ की पुस्तकों की सूची में लिखा है ! मिर्जा कालिम घली “जवान मूलनिवादी तो दिल्‍ली के थे, लेकिन लख- नऊ मे रहने लगे थे, जहाँ वह १७८४ ई० में मौजद ये | इनका चर्चा नवाब श्रली इब्रादीम याँ ने श्रपने तबकिरा 'शुलबार इब्रादीम” में किया है, जिनके पाप्त इन्होंने अपनी कुछ रघना नमूसे के सौर पर मेजी थी । १०० ई० मे कल स्काट ने इनको मुंशी वी एक जगह देफर कलकत्ते मेजा । मुंशी बेनीनरायन मैं द्पने 'तिजफिरा जहान' पुस्तक में; जो १८१४ ई० की लिखी हुई है, लिया हैं कि यह उस समय जीवित थे, बेहिंक १८१५ हे में कलकतें के फोट विलियम कालेज के मुशायरे में मंजजूद थे | इनकी निम्नलिखित पुस्तकें हैं :-- (६) काशिदास की शकुतला का उदू शनुवाद, जिसकी भूमिका में लिखते हैं कि मूल पुस्तक का श्रनुबाद द्रजभाषा में १७१६ ० में फसंसतियर के सेनापति ,खुराई खा के पुर मंतलायों की श्राज्ञा से एक निवाज कयीश्वर नामक कवि ने किया था | डा० गिलक्राइस्ड की श्राश्ञा से श्रनुवाद ब्रजभाषा से उदूं में ८०१ ई० में किया गया द्वीर इरका संशोधन लल्त्ूलालजी फबीशवर ने किया । यह पुस्तक १८०२ ई० में कलकते में छपी ) (र) ,कुरान का उर्दू श्रनुवाद--गिलकाइस्ट लाइबर की आशा से । (हे) विंदसमबत्तीवी--निसके श्रतुवाद में लल्लूनालजी भी सं्मि- लिव थे । (थ तारीस परिश्ता सा अनुवाद--नदमनोवंश के सं्रंघ में । (२) बारदमासा या दरूर-द्रिन्द, रेप१९ ई० में कलकतते में मुद्धित, जिशमें दिन्टुस्तान की ऋतुय्रो श्र हिन्दू-मुसलमानों के ह्वौद्वारों बा वर्णन है । जवान” ने 'ख़िर्द धफ्रोज' (जिसका वर्णन श्रागे किया जाता हैं) श्र मीर व सोदा की बबिता के कुछ चुने हुए पद प्रकाशित किए ये । उनके दो बेटे 'श्रया” श्रीर 'ुमताज” भी कुछ प्रति हुए । निद्दा्चचंद॑लादौरी पैदा तो दिल्ली में हुए, पर लादौर में श्रथिक रदे [ रु १७ ई० में कलक्त्त गए | इनका श्ौर इुछ हा मालूम नदीं टु्रां, जवान




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