उर्दू साहित्य का इतिहास पद्य खंड भाग 2 | Urdu Sahitya Ka Itihas Padh Khand Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
137
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उदू गद्य का यारंभ श्र उसका विकार्स हे
देदरी को मृखु १८२३ ई० मे हुई, जैला कि डा० छोगर ने ग्वघ की
पुस्तकों की सूची में लिखा है !
मिर्जा कालिम घली “जवान मूलनिवादी तो दिल्ली के थे, लेकिन लख-
नऊ मे रहने लगे थे, जहाँ वह १७८४ ई० में मौजद ये | इनका चर्चा नवाब
श्रली इब्रादीम याँ ने श्रपने तबकिरा 'शुलबार इब्रादीम” में
किया है, जिनके पाप्त इन्होंने अपनी कुछ रघना नमूसे के
सौर पर मेजी थी । १०० ई० मे कल स्काट ने इनको मुंशी वी एक जगह
देफर कलकत्ते मेजा । मुंशी बेनीनरायन मैं द्पने 'तिजफिरा जहान' पुस्तक में;
जो १८१४ ई० की लिखी हुई है, लिया हैं कि यह उस समय जीवित थे,
बेहिंक १८१५ हे में कलकतें के फोट विलियम कालेज के मुशायरे में मंजजूद
थे | इनकी निम्नलिखित पुस्तकें हैं :--
(६) काशिदास की शकुतला का उदू शनुवाद, जिसकी भूमिका में
लिखते हैं कि मूल पुस्तक का श्रनुबाद द्रजभाषा में १७१६ ० में फसंसतियर
के सेनापति ,खुराई खा के पुर मंतलायों की श्राज्ञा से एक निवाज कयीश्वर
नामक कवि ने किया था | डा० गिलक्राइस्ड की श्राश्ञा से श्रनुवाद ब्रजभाषा
से उदूं में ८०१ ई० में किया गया द्वीर इरका संशोधन लल्त्ूलालजी
फबीशवर ने किया । यह पुस्तक १८०२ ई० में कलकते में छपी )
(र) ,कुरान का उर्दू श्रनुवाद--गिलकाइस्ट लाइबर की आशा से ।
(हे) विंदसमबत्तीवी--निसके श्रतुवाद में लल्लूनालजी भी सं्मि-
लिव थे ।
(थ तारीस परिश्ता सा अनुवाद--नदमनोवंश के सं्रंघ में ।
(२) बारदमासा या दरूर-द्रिन्द, रेप१९ ई० में कलकतते में मुद्धित,
जिशमें दिन्टुस्तान की ऋतुय्रो श्र हिन्दू-मुसलमानों के ह्वौद्वारों बा वर्णन है ।
जवान” ने 'ख़िर्द धफ्रोज' (जिसका वर्णन श्रागे किया जाता हैं)
श्र मीर व सोदा की बबिता के कुछ चुने हुए पद प्रकाशित किए ये । उनके
दो बेटे 'श्रया” श्रीर 'ुमताज” भी कुछ प्रति हुए ।
निद्दा्चचंद॑लादौरी पैदा तो दिल्ली में हुए, पर लादौर में श्रथिक
रदे [ रु १७ ई० में कलक्त्त गए | इनका श्ौर इुछ हा मालूम नदीं टु्रां,
जवान
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