निबंध रत्नावली | Nibandh Ratnawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
344
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्ू निषवस्घ रसावी
परिमाण जर्थात् स्वयों का आरोद और भवरोद ( उतार-चढ़ाव )
हो उसका मूते आधार दोता है । उसे सुचारु रूप से ध्यवस्पित
करने से भिन्न मिन्न रसों और भावों का आविर्भाव होता है !
अन्तिम 'अर्यातू सर्वोध स्थान काव्य कला का दै।. उसमें
भूत आधार की आवश्यकता दी नहीं होती । उसका भादुर्भाव
शब्द-समूद्दों या वाक्यों से शोता है, जो मनुष्य के मानसिक
सायों के योतक दोवे हैं । काव्य में जव केवल जय की रमणीयता
रददती दे, तव सो मू्तें आधार का अस्तित्र नहीं रहता, पर
सब्द फी रमणीयता आने से संगीत के सदश दी नादन्सौन्दर्य-रूप
आधार की उतत्ति दो जाती है। भारतीय काव्य-क्ला में
पाश्चात्य चाव्य-कला की अपेक्षा नाद-रूप मूर्ते आधार की योजना
अधिक रहती है; पर यदद अर्थ की रमणीयता के समान काव्य
का अनिवायें अज्म नहीं हैं । अर्थ की रमणीयता काव्य कला का
मघान शुण है और नाद की रमणीयता उसका गौण शुण है ।
. ललित फलाओओं के आधार तस्व--उऊपर जो इुछ
कद्दा गया है, उससे ललित फलाओं के सम्बन्ध में नीचे लिखी
बातें ज्ञाव दोती है--( १ ) सन फ्लाओं में किसी न किसी
श्रकार के आधार की आवश्यकता शोती है । ये आधार ईंट-
पत्थर के टुकड़ों से लेकर शाव्द-संकेतों तक शो सकते हैं । ईस
लक्षण में अपयाद इतना ही दै कि अर्थ-रमणीय कात्यनकला में
इस आधार का लि नदी रइता! ( २) जिन उपकरणों
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