निबंध रत्नावली | Nibandh Ratnawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्ू निषवस्घ रसावी परिमाण जर्थात्‌ स्वयों का आरोद और भवरोद ( उतार-चढ़ाव ) हो उसका मूते आधार दोता है । उसे सुचारु रूप से ध्यवस्पित करने से भिन्न मिन्न रसों और भावों का आविर्भाव होता है ! अन्तिम 'अर्यातू सर्वोध स्थान काव्य कला का दै।. उसमें भूत आधार की आवश्यकता दी नहीं होती । उसका भादुर्भाव शब्द-समूद्दों या वाक्यों से शोता है, जो मनुष्य के मानसिक सायों के योतक दोवे हैं । काव्य में जव केवल जय की रमणीयता रददती दे, तव सो मू्तें आधार का अस्तित्र नहीं रहता, पर सब्द फी रमणीयता आने से संगीत के सदश दी नादन्सौन्दर्य-रूप आधार की उतत्ति दो जाती है। भारतीय काव्य-क्ला में पाश्चात्य चाव्य-कला की अपेक्षा नाद-रूप मूर्ते आधार की योजना अधिक रहती है; पर यदद अर्थ की रमणीयता के समान काव्य का अनिवायें अज्म नहीं हैं । अर्थ की रमणीयता काव्य कला का मघान शुण है और नाद की रमणीयता उसका गौण शुण है । . ललित फलाओओं के आधार तस्व--उऊपर जो इुछ कद्दा गया है, उससे ललित फलाओं के सम्बन्ध में नीचे लिखी बातें ज्ञाव दोती है--( १ ) सन फ्लाओं में किसी न किसी श्रकार के आधार की आवश्यकता शोती है । ये आधार ईंट- पत्थर के टुकड़ों से लेकर शाव्द-संकेतों तक शो सकते हैं । ईस लक्षण में अपयाद इतना ही दै कि अर्थ-रमणीय कात्यनकला में इस आधार का लि नदी रइता! ( २) जिन उपकरणों




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