इश्वरचन्द्र गुप्त | Ishvarachandra Gupt
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
884 KB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आरम्भिक णी्दी
रुक तटयोगी) सरीते, शतकत्ता के (पद भर धन से गम्पत्त) अभिजात-वेमें - के
हुछ भद पुर्पो ने झागे बदकर, पैसे और अन्य शाघनों की मदद से योजना को
ब्यावहारिव धरातल पर उतारने से मदद पटुंचायी । है
इस प्रदार ईश्वर चस्द्र गुप्त के सम्पादव तय में 'सम्बाद-प्रभाकर '(सूचना-सूप)
माप्ताहिब था जर्स टुमा। 28 जगवरी 193। को इसवा पहला अक प्रकाश में
काया । शेर में पठिगा वा ८. पन। प्रेस ने था, बौर उस गरय पह चघोरबागान
इलाके के एव प्रेस से छपती, सेविन ठाइुर परियार ने ज्दी ही अपने पर में हो
एंग प्रेस दटा दिया भौर पत्निवा थट्टो से छपने लगी । बुछ समप तक पत्तिका का
द्रराशन गाप्ताहिक रे रूप में चला, फिर यह सप्ताह में तीन दिन एपने लगी और
अन्तत: उस गमय मे सत्य साधनों थी सीमाओं के भीतर-- एक पूर्णस्पेण देनिक के
कप मे--प्रतिष्टित हो गयी ।
इन विषयों पर थिस्तारपूर्वर धर विह्तृत रूप से बात करने का अवसर, हमे
अगले अध्याय में मिलेगा । फिर भी, यहाँ पहुंचने से पहले बर्वि के जीवन की उस
महत्त्वपूर्ण पटना वा उत्लेद उरूरी है, जिसमे उपने प्रासद दुप की तीग्रता ने उनके
ब्यवितत्व पर एव गहरा निशान ही नही छोड़ा बल्कि ब्यावह्ारिक रूप से उनके
जीवन भी गति ही दूसरी दिश्त में सोद दी ।
पर्द्ह ब्ष की आापु में ही ईश्वरचन्द्र गुप्त का विवाह हो गया था । उस समय
बी झ्ौर शादियों की तरह, यह भी स्पष्ट तौर पर परिवार द्वारा तय भौर
व्यवस्थित शादी थी । प्रेम-विवाह उन दिनों दुललेभ पटना थी । बर-वधूं को
मिलाने का दायित्व निन्यानवे प्रतिशत मामलों मे दोनों पक्षों के अभिभावकों पर
था । ईध्वरचपद्र के पिता ने, गुप्तीपारा के बेच परिवार की एक कन्या अपने लड़के
के लिए चुनी । पतुक दंश-परम्परा के सानदण्डों बे आधार पर इस परिवार की
श्रतिष्टा केची पड़ती थी । मुख्य रूप से इसी के प्रभाव में हरिनारायण ने अपने बेटे
की शादी गौरहरि मलिक की पुन्नी दुर्गामणि से करना तय किया होगा । दुर्भाग्य से,
दुर्गामणि कुरूपवती हूने के साथ मन्द मति भी निकली | ईश्दरचन्द्र गुप्त जैसे,
समय से पूर्व विकसित बालक के लिए, अदिकसित बुद्धि और बुरूप कन्या के साथ
यह विवाह, शुरू से लेकर अन्त तक घातक साबित हुआ । परिवार द्वारा रचायी इस
शादी मे युवा वर के सपनो की आँव मद्धिम कर दी और अशागन दघू से उन्हें पूरी
तरह बलग कर दिया ।
ईश्वरचन्द्र अपनी पत्नी के साथ कभी नहीं रह सके । उन्दोंने अकेले रहना
पसन्द किया । पली के सुघ के सपने इस अलगाव से घकनाचूर हुए होंगे से किन
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